अलाउद्दीन खिलज़ी का इतिहास

अलाउद्दीन खिलजी के बारे में जानकारी देने वाले प्रमुख स्त्रोत..

तारीख ए फ़िरोज़शाही

तारीख ए फ़िरोज़शाही ग्रन्थ की रचना जियाउद्दीन बरनी के द्वारा फ़ारसी भाषा में की गई थी और इसमें गयासुद्दीन बलबन से लेकर फ़िरोज़शाह तुग़लक के शासनकाल तक की ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख विस्तार से किया गया है | तारीख ए फ़िरोज़शाही में अलाउद्दीन खिलज़ी के शासनकाल की कुछ महत्वपूर्ण जानकारियों को भी विस्तार से बताया गया है |

खजाईनुल फुतुह

खजाईनुल फुतुह की रचना अमीर ख़ुसरो के द्वारा की गई थी और इसमें अलाउद्दीन खिलज़ी के आक्रमणों तथा दक्षिण अभियानों के बारे विस्तार से बताया गया है | खजाईनुल फुतुह के अनुसार शतरंज के खेल का आविष्कार भारत में ही हुआ है और खजाईनुल फुतुह को तारीख ए अलाई के नाम से भी जाना जाता है।

अलाउद्दीन खिलज़ी का इतिहास

अलाउद्दीन खिलज़ी उर्फ़ अली गुर्शास्प का जन्म 1266 – 67 ई. में अफ़गानिस्तान के कलात शहर में हुआ था।

बचपन में ही माता – पिता के गुजरने के बाद अलाउद्दीन खिलज़ी तथा उसके सभी भाइयों का पालन पोषण उसके चाचा जलालुद्दीन फ़िरोज़ खिलज़ी ने किया था।

1290 में जलालुद्दीन फ़िरोज़ खिलज़ी जब दिल्ली का सुल्तान बना तो उसने अलाउद्दीन खिलज़ी को अमीर ए तुजुक और इसके बाद कड़ा मानिकपुर का सूबेदार बनाया।

1296 में अलाउद्दीन खिलज़ी ने अपने चाचा जलालुद्दीन फ़िरोज़ खिलज़ी की हत्या कर स्वयं को सुल्तान घोषित कर दिया।

अलाउद्दीन खिलज़ी ने 20 जुलाई 1296 ई. को जलालुद्दीन फ़िरोज़ खिलज़ी की हत्या कर, कड़ा-मानिकपुर में ही स्वयं को सुल्तान घोषित कर दिया था।

22 अक्टूबर 1296 को दिल्ली में, बलबन द्वारा बनवाये गए लाल महल में अपना राज्याभिषेक करवाया था।

राज्याभिषेक के बाद अलाउद्दीन खिलज़ी ने तमाम उपाधियाँ प्राप्त की जैसे – सिकन्दर ए सानी, यामिनी उल ख़िलाफ़त, विश्व का सुल्तान, युग का विजेता, पृथ्वी के शासकों का सुल्तान, जनता का चरवाहा और सिकंदर द्वितीय आदि।

प्रशासनिक कार्य

सिंहासन पर बैठने के बाद अलाउद्दीन खिलज़ी ने ख्वाजा खतिर को वज़ीर, सद्रउद्दीन आरिफ़ को मुख्य काज़ी और अपने परम मित्र अलाउलमुल्क को मुख्य सलाहकार के पद पर नियुक्त किया।

अलाउद्दीन खिलज़ी पूर्ण निरंकुशता में विश्वास करता था उसका राजत्व सिद्धांत मुख्य रूप से तीन बातों  पर आधारित था –  शासक की निरंकुशता, धर्म और राजनीति का पृथक्कीकरण तथा साम्राज्यवाद।

अलाउद्दीन खिलज़ी का एक कथन बहुत प्रसिद्ध है “सूर्य पूर्व से पश्चिम तक धरती को अपनी तलवार की किरणों से आलोकित करता है उसी प्रकार शासक को भी विजय हासिल करनी चाहिए और उन विजयों को सुरक्षित रखना चाहिए”

अलाउद्दीन खिलज़ी मद्य-पान निषेध करने वाला दिल्ली का प्रथम सुल्तान माना जाता है |

प्रमुख मंगोल आक्रमण

प्रथम आक्रमण – 1298 ई. में क़ादिर खां के नेतृत्व में मंगोलों ने आक्रमण किया लेकिन अलाउद्दीन खिलज़ी के दो सेनापति उलूग खां और ज़फर खां के नेतृत्व वाली सेना ने मंगोलों को बुरी तरह पराजित किया |

दूसरा आक्रमण – 1299 ई. में सलदी के नेतृत्व में मंगोलों ने आक्रमण किया और कुछ क्षेत्र जीतने में सफल रहे |

तीसरा आक्रमण – 1300 ई. में दवा खान के नेतृत्व में मंगोलों ने आक्रमण किया और इस युद्ध में मंगोल पराजित हुए लेकिन सेनापति ज़फर खां मारा गया |

चौथा आक्रमण – 1303 ई. में तारगी के नेतृत्व में मंगोलों ने किया लेकिन अलाउद्दीन खिलज़ी के किले को जीतने में असफल रहे।

पाँचवा आक्रमण – 1305 ई. में अलीबेग और तारताक़ के नेतृत्व में मगोलों ने आक्रमण किया लेकिन हार गए। अलाउद्दीन खिलज़ी ने इस युद्ध के लिए मलिक नायक को भेजा था

छठा आक्रमण – 1306 ई. में काबुक, इक़बाल मंद और ताई-बू के नेतृत्व में मंगोलों ने आक्रमण किया लेकिन मलिक काफूर और गाज़ी मलिक तुगलक के नेतृत्व वाली सेना ने उन्हें बुरी तरह पराजित किया।

प्रमुख सैन्य अभियान

*अलाउद्दीन खिलजी ने सिकंदर द्वितीय की उपाधि धारण कर विश्व विजय की योजना बनाई और सैन्य अभियान प्रारंभ किए।

*सैन्य अभियानों में प्रमुख भूमिका  उलूग खां, नुसरत खां, अल्प खां, जफर खान और मलिक काफूर की मानी जाती है।

*विंध्यांचल पर्वत को पार करने वाला प्रथम तुर्क विजेता अलाउद्दीन खिलजी को ही माना जाता है।

1.गुजरात अभियान – 1297-98 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने उलूग खां और नुसरत खां  के नेतृत्व वाली सेना को गुजरात विजय के लिए भेजा | उस समय गुजरात के शासक वाघेला राजपूत रायकर्ण द्वितीय थे | अहमदाबाद के निकट दोनों सेनाओं के बीच युद्ध हुआ परंतु रायकर्ण द्वितीय की सेना पराजित हुई |  रायकर्ण द्वितीय अपनी पुत्री देवल देवी के साथ भागकर देवगिरि के शासक रामचंद्र देव के यहां शरण प्राप्त की लेकिन युद्ध में रायकर्ण की पत्नी कमला देवी को अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने बंदी बना लिया और दिल्ली ले आए | जहां अलाउद्दीन खिलजी ने उससे निकाह कर अपनी सबसे प्रियतम रानी बनाया |

*गुजरात अभियान के दौरान ही सेनानायक नुसरत खान एक हिंदू दास मलिक काफूर को एक हज़ार दीनार में खरीद कर लाया था |

*गुजरात विजय के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात का सूबेदार अल्प खां को बनाया और मलिक काफूर को ताज-उल-मुल्क काफूरी की उपाधि प्रदान की थी |

2.रणथम्भौर अभियान – 1299 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने उलूग खान और नुसरत खान के नेतृत्व वाली सेना को रणथंभौर (आधुनिक राजस्थान में) पर आक्रमण के लिए भेजा |  उस समय रणथम्भौर मे चौहान वंश के राजा हम्मीर देव का शासन था और हम्मीर देव की सेना ने उलूग खान और नुसरत खान की सेना को पराजित किया | इस युद्ध में नुसरत खान मारे गए |

*1301 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने स्वयं रणथम्भौर पर आक्रमण किया और हम्मीर देव के मंत्री रणमल ने अलाउद्दीन खिलजी का साथ दिया तथा हम्मीर देव इस युद्ध में पराजित हुए | हम्मीर देव की रानी रंगदेवी तथा अन्य महिलाओं ने जौहर कर अपने प्राण त्याग दिए |

3.चित्तोड़ अभियान – 1302/3 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ राजधानी में मेवाड़ पर आक्रमण किया और उस समय चित्तौड़ के राजा राणा रतन सिंह थे | अमीर खुसरो इस अभियान में अलाउद्दीन खिलजी के साथ में था |

चित्तौड़ के वैभव को देखकर अमीर खुसरो ने कहा  “हिंदुओं का स्वर्ग सातवें स्वर्ग से भी ऊंचा है” अलाउद्दीन खिलजी और रतन सिंह के बीच हुए युद्ध में रतन सिंह की पराजय हुई और उन्हें बंदी बना लिया गया | राजमहल की सभी महिलाओं ने रानी संग जौहर कर लिया और अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ को जीतने के बाद, वहां का शासन अपने पुत्र खिज्र खां को सौंप दिया लेकिन चित्तौड़ की जनता ने उसे अपना शासक स्वीकार नहीं किया और 1321 में चित्तौड़ पर फिर से राजपूतों ने अधिकार कर लिया |

4.जालौर अभियान – 1304-5 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर पर आक्रमण किया और  उस समय वहां के शासक चौहान वंशीय कृष्णदेव तृतीय या कान्हा देव थे लेकिन उन्होंने दो युद्ध जीतने के पश्चात अंत में अलाउद्दीन खिलजी की सत्ता स्वीकार कर ली |

5.मालवा अभियान – 1305 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा पर आक्रमण करने के लिए आइन-उल-मुल्क को भेजा और आइन उल मुल्क ने मालवा के राजा महलक देव को पराजित कर मालवा, उज्जैन, धार तथा चंदेरी पर अधिकार कर लिया था |

6.देवगिरि अभियान – 1307/8 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने मलिक काफूर को देवगिरि पर आक्रमण करने के लिए भेजा और  मलिक काफूर ने देवगिरि के राजा रामचंद्र देव को पराजित किया तथा बंदी बनाकर दिल्ली लाए लेकिन अलाउद्दीन खिलज़ी ने रामचंद्र देव के साथ सम्मानजनक व्यवहार किया एवं रायरायान की उपाधि, स्वर्ण छत्र, 1 लाख स्वर्ण टका और नवसारी (आधुनिक गुजरात में) की जागीर प्रदान की |

7.वारंगल अभियान – 1309/10 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने मलिक काफूर को तेलंगाना जिसकी राजधानी वारंगल पर आक्रमण के लिए भेजा था और उस समय वारंगल के राजा प्रताप रूद्रदेव थे | प्रताप रूद्रदेव ज्यादा दिनों तक अपने किले की सुरक्षा नहीं कर पाए और अंत में मलिक काफूर के साथ संधि करनी पड़ी और संधि में अपार धन और विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा मलिक काफूर को प्रदान किया | कोहिनूर हीरा गोलकुंडा की खान से निकाला गया था और इसका सर्वप्रथम उल्लेख अलाउद्दीन खिलजी के समय में ही मिलता है तथा वर्तमान में कोहिनूर हीरा ब्रिटिश राजमहल में रखा है |

8.द्वारसमुद्र अभियान – 1311 ई. में मलिक काफूर ने होयसल की राजधानी द्वारसमुद्र पर आक्रमण किया और उस समय वहां के राजा वीर बल्लाल तृतीय थे | वीर बल्लाल तृतीय ने मलिक काफूर के साथ संधि कर अलाउद्दीन खिलजी की अधीनता स्वीकार की |

9.मदुरा अभियान – 1311 ई. में मलिक काफूर ने मदुरा पर आक्रमण किया और उस समय वहां के शासक सुंदर पाण्ड्य और वीर पाण्ड्य में उत्तराधिकार के लिए युद्ध चल रहा था |  मदुरा पर आक्रमण के लिए सुंदर पाण्ड्य ने मलिक काफूर को आमंत्रित किया था और मलिक काफूर ने जब मदुरा पर आक्रमण किया तो वीर पाण्ड्य अपना राज्य छोड़कर भाग गया और मलिक काफूर को अपार धन की प्राप्ति हुई |

10.देवगिरि अभियान – 1312-13 ई. में मलिक काफूर ने देवगिरि पर द्वितीय आक्रमण क्योंकि रामचंद्र देव की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र शंकर देव या सिंहन देव द्वितीय राजा बने लेकिन उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी को कर देना बंद कर दिया था। शंकर देव ने मलिक काफूर के साथ युद्ध किया लेकिन युद्ध में मारा गया तथा संपूर्ण राज्य दिल्ली सल्तनत के अधीन चला गया और मलिक काफूर का दक्षिण में अंतिम अभियान देवगिरि के विरुद्ध ही माना जाता है।

स्थानीय और प्रांतीय प्रशासन

*जियाउद्दीन बरनी के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी के समय में 11 प्रांत थे- 1.गुजरात, 2.मुल्तान, 3.लाहौर, 4.बदायूं 5.समाना,  6.धार एवं उज्जैन, 7.मेरठ, 8.चित्तौड़, 9.अवध, 10.चंदेरी, और 11.कड़ा मानिकपुर |

*प्रांतों के सर्वोच्च अधिकारी को वली, मुक्ता या प्रांतपति कहा जाता था ।

*जिले का प्रधान अमीर या शाहना होता था।

*प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गांव थी जिसका प्रधान मुखिया होता था।

प्रमुख प्रशासनिक सुधार

*दीवान ए विजारत :- यह वित्त विभाग होता था और वजीर इसका सर्वोच्च अधिकारी होता था | इस विभाग के मुख्य कार्य – मंत्रियों तथा सभी विभागों की देखभाल करना एवं  शाही सेना का नेतृत्व करना होता था। अलाउद्दीन खिलज़ी के शासनकाल में वजीर का पद ख्वाजा खतिर, नुसरत खान और अंत में मलिक काफूर को सौंपा गया था

*दीवान ए इंशा :- यह शाही सचिवालय या पत्राचार विभाग होता था और  इस विभाग का मुख्य कार्य – शाही आदेशों और पत्रों का प्रारूप तैयार करवाना होता था। इस विभाग में अनेक सचिव होते थे जिन्हें दबीर कहा जाता था।

*दीवान ए आरिज़ :- यह सैन्य विभाग होता था और इस विभाग का सर्वोच्च अधिकारी आरिज़ ए मुमालिक (सेनापति) होता था और इस विभाग का मुख्य कार्य – सेना की भर्ती करना, वेतन बांटना, सेना का निरीक्षण करना तथा सेना संबंधी संपूर्ण कार्य इसी विभाग के अंतर्गत किए जाते थे।

*दीवान ए रसालत :- यह विदेश विभाग होता था और इस विभाग का मुख्य कार्य – पड़ोसी दरबारों को भेजे जाने वाले पत्रों का प्रारूप तैयार करना, विदेश जाने वाले तथा विदेश से आने वाले राजदूतों के साथ संपर्क स्थापित करना होता था तथा  यह विभाग स्वयं अलाउद्दीन खिलजी के पास था |

*दीवान ए रियासत :- यह विभाग वाणिज्य (व्यापार) होता था और सर्वप्रथम इस विभाग की स्थापना अलाउद्दीन खिलजी ने ही की थी और  इस विभाग का मुख्य कार्य – बाजार के व्यापारियों पर नियंत्रण स्थापित करना होता था |

*न्याय व्यवस्था :- राज्य की सर्वोच्च शक्ति सुल्तान की पास होती थी और इसके बाद काजी उल कुज़ात  होता था | प्रांतों में प्रांतपति तथा काज़ी और गांव में पंचायत एवं मुखिया न्याय करते थे जो अक्सर हिंदू हुआ करते थे | अलाउद्दीन खिलजी के समय में कुरान एवं कयास (तर्क) के आधार पर न्याय की व्यवस्था की गई थी लेकिन गांव में न्याय की व्यवस्था हिंदू ग्रंथों के आधार पर की जाती थी क्योंकि गांव में रहने वाली जनसंख्या ज्यादातर हिंदू होती थी |

*गुप्तचर व्यवस्था :- इस विभाग का प्रमुख बरीद ए मुमालिक  होता था और इस विभाग का मुख्य कार्य – गुप्त सूचनाओं को सुल्तान तक पहुंचाना तथा राज्य के सभी विभागों पर कड़ी निगाह रखना होता था। बरीद संदेश वाहक होते थे और मुनहियान या मुन्ही बाजार की गुप्त सूचनाओं को सुल्तान तक पहुंचाते थे

*पुलिस व्यवस्था :- इस विभाग का प्रमुख कोतवाल होता था और इस विभाग का मुख्य कार्य – संपूर्ण राज्य में शांति स्थापित करना होता था। अलाउद्दीन खिलजी ने पुलिस व्यवस्था में सुधार हेतु  दीवान ए रियासत, शहना (दंडाधिकारी) तथा मुहतसिब  (लोक आचरण अधिकारी) नामक नवीन पदों का निर्माण किया था

*सैनिक सुधार :- दिल्ली के सुल्तानों में अलाउद्दीन खिलजी प्रथम सुल्तान था जिसने एक शक्तिशाली स्थाई केंद्रीय सेना की स्थापना की थी अलाउद्दीन खिलजी ने सैनिकों की हुलियां लिखने की प्रथा आरंभ की और घोड़ो को दागने की प्रथा भी प्रारंभ की | सैनिकों को नगद वेतन देने की प्रथा की शुरुआत करने वाला प्रथम सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को ही माना जाता है |

आर्थिक सुधार

*अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार दो प्रकार के थे – 1. बाजार व्यवस्था और  2.भू-राजस्व व्यवस्था |

1.बाजार व्यवस्था :- इसकी देखभाल का कार्य दीवान ए रियासत (वाणिज्य विभाग)  को सौंपा गया था | इस विभाग की जिम्मेदारी याकूब के हाथों में थी और उसके अधीन शहना ए मंडी (बाजार का अधीक्षक) एवं मुनहियान या मुन्ही (बाजारी गुप्तचर) होते थे | शहना ए मंडी  का कार्य – बाजार में वस्तुओं के मूल्यों व मापतौल की जांच करना होता था | बाजार न्याय के लिए सराय अदल नामक अधिकारी की नियुक्ति की गई थी तथा अलाउद्दीन खिलजी के बाजार व्यवस्था के बारे में विस्तृत जानकारी जियाउद्दीन बरनी की पुस्तक तारीख ए फिरोजशाही, अमीर खुसरो के खजाईनुल फतूह और इब्न बतूता की पुस्तक रेहला में मिलती है |

2.भू राजस्व व्यवस्था :- दिल्ली सल्तनत के सभी सुल्तानों में अलाउद्दीन खिलजी को प्रथम सुल्तान माना जाता है जिसने वित्तीय और भू-राजस्व सुधारों में विशेष रुचि ली तथा भूमि की पैमाइश (मापना)  या अनुमान के आधार पर सर्वप्रथम भूमि कर लगाया |

राजस्व कर प्रणाली को सुधारने के लिए दीवान ए मुस्तखराज (राजस्व विभाग) की स्थापना की थी और इस विभाग का कार्य –  किसानों से भू राजस्व कर को इकट्ठा करना होता था | कर एकत्रित करने के लिए आमिल एवं गुमास्ता (प्रतिनिधि) होते थे और गांव में कर वसूलने की जिम्मेदारी गांव के मुखिया चौधरी अथवा मुकद्दम को प्रदान की गई थी |

भूमि के प्रकार

1.इक्ता भूमि :-  इस भूमि का मालिक इक्तादार (जमीदार)  होता था |

2.खालसा भूमि :-  यह भूमि सीधे केंद्र के नियंत्रण में होती थी |

3.उर्सी  भूमि :- इस भूमि के मालिक तुर्की मुसलमान होते थे ।

4.इनाम व वक्फ  की भूमि :- यह भूमि कर मुक्त होती थी ।

कर के प्रकार

1.जजिया :- यह कर गैर मुस्लिमों से लिया जाता था लेकिन ब्राह्मण इस कर से मुक्त थे परंतु सर्वप्रथम फिरोज तुगलक ने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगाया था। क्षत्रियों से 40 टका, वेश्यों से 20 टका और शूद्रों से 10 टका वार्षिक कर लिया जाता था ।

2.जकात :- यह एक धार्मिक कर था जिसे धनी मुस्लिमों से लिया जाता था इसकी मात्रा 1/40 होती थी।

3.खराज :- यह भू-राजस्व कर था और इसकी मात्रा 50% तक होती थी लेकिन कुछ अनाज राशन के रूप में वापस कर दिया जाता था | यह कर गैर मुस्लिमों से लिया जाता था।

4.उर्स :- यह मुस्लिमों से लिए जाने वाला भू-राजस्व कर था  जिसकी मात्रा 10% होती थी।

5.खम्स :- यह कर लूट के धन पर लिया जाता था इसकी मात्रा 80% सुल्तान के पास रहती थी।

6. व्यापारिक कर :- यह मुस्लिमों से 2.5% और गैर मुस्लिमों से 5% लिया जाता था।

7.घरीकर और चरीकर :- इन करों की शुरुआत सर्वप्रथम अलाउद्दीन खिलजी द्वारा ही की गई थी | घरीकर  बड़े घर वालों से लिया जाता था और चरीकर  दुधारू पशुओं पर लिया जाता था

साहित्य

अलाउद्दीन खिलजी ने 46 साहित्यकारों को अपना आश्रय प्रदान किया

अमीर हसन को भारत का सादी कहा जाता है।

अमीर खुसरो दरबारी कवि के पद पर पहली बार अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में ही नियुक्त हुए थे।

स्थापत्य कला

अलाउद्दीन खिलजी ने 1311 में कुतुब मीनार के पास अलाई दुर्ग अथवा कुश्त ए सीरी  का निर्माण करवाया था।

अलाउद्दीन खिलज़ी ने निजामुद्दीन औलिया के मकबरे के परिसर में ज़मैयत खाना मस्जिद का निर्माण करवाया था।

1303 ई. में हजार स्तंभों वाला तिमंजिला राजभवन का निर्माण करवाया था।

अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली में ही हौज़ ए खास या हौज़ ए अलाई (तालाब) का निर्माण करवाया था।

शम्सी तालाब के निर्माण में  भी कुछ सहयोग अलाउद्दीन खिलजी ने प्रदान किया था।

अलाउद्दीन खिलजी अपने अंतिम समय में एक गंभीर रोग से पीड़ित हो गया था और अंत में जनवरी 1316 ई. में अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु हो गई और उसे दिल्ली की जामा मस्जिद के बाहर  दफनाया गया था।

अलाउद्दीन खिलज़ी का शासनकाल 1296 – 1316 के मध्य था।

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