खिज्र खां का इतिहास
खिज्र खां के बारे में जानने का एकमात्र महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्त्रोत तारीख ए मुबारकशाही ग्रंथ है जिसकी रचना याहिया बिन अल अहमद सरहिंदी ने की थी। तारीख ए मुबारकशाही ग्रंथ, सैय्यद वंश के दूसरे शासक मुबारक शाह को समर्पित है क्योंकि इस ग्रन्थ की रचना मुबारक शाह के शासनकाल में ही हुई थी ।
सैय्यद वंश का परिचय
दिल्ली सल्तनत में तुगलक वंश के बाद सैय्यद वंश का शासन स्थापित हुआ और सैय्यद वंश के शासकों का मूल निवास स्थान कहां था, इस संबंध में इतिहासकार एकमत नहीं है हालांकि खिज्र खां ने स्वयं को पैगंबर मुहम्मदसाहब का वंशज बताया है किंतु इसके बारे में कोई भी प्रमाणित जानकारी उपलब्ध नहीं है।
सैय्यद वंश की स्थापना मई 1414 में खिज्र खां ने तत्कालीन दिल्ली के शासक दौलत खान लोदी को पराजित करके किया था। उस समय खिज्र खां मुल्तान, लाहौर और दीपालपुर का सूबेदार था। सैय्यद वंश में कुल 4 शासक खिज्र खां, मुबारक शाह, मुहम्मद शाह, अलाउद्दीन हसन शाह हुए जिन्होंने केवल 37 वर्ष तक, दिल्ली पर शासन किया जो दिल्ली सल्तनत के सभी राजवंशों में, सबसे कम शासनकाल माना जाता है ।
खिज्र खां का इतिहास
खिज्र खां का वास्तविक नाम सैय्यद खिज्र खां इब्न मलिक सुलेमान था ।
खिज्र खां के पिता का नाम मलिक सुलेमान था जो मुल्तान का गवर्नर था ।
खिज्र खां को सर्वप्रथम फिरोजशाह तुगलक ने मुल्तान का सूबेदार नियुक्त किया था l
दिसंबर 1398 में, समरकंद के शासक तैमूर लंग ने दिल्ली पर आक्रमण किया और असंख्य लोगों की हत्या की तथा दिल्ली में खूब लूट – पाट मचाई ।
तैमूर लंग ने ही खिज्र खां को मुल्तान, लाहौर और दीपालपुर का सूबेदार बनाया था ।
1412 में तुगलक वंश के अंतिम शासक नासिरुद्दीन महमूद शाह तुगलक की मृत्यु के बाद, दौलत खां लोदी को दिल्ली का शासक बनाया गया परंतु खिज्र खां को यह पसंद नहीं आया और उसने मई 1414 में दिल्ली पर आक्रमण किया तथा दौलत खां लोदी को पराजित करके, दिल्ली के सिंहासन पर अधिकार कर लिया ।
मई-जून 1414 में, खिज्र खां ने अपना राज्याभिषेक करवाया और दिल्ली की गद्दी प्राप्त की ।
सैय्यद वंश का संस्थापक खिज्र खां को ही माना जाता है ।
दिल्ली का शासक बनने के बाद, खिज्र खां ने रैय्यत ए आला की उपाधि धारण की ।
रैय्यत ए आला का अर्थ होता है – जो शासक किसी अन्य शासक के अधीन हो यानि प्रतिनिधि ।
तैमूर के आक्रमण के पश्चात दिल्ली सल्तनत कई छोटे – छोटे टुकड़ों में विभाजित हो गई थी परंतु खिज्र खां ने एक करने का प्रयास किया लेकिन ज्यादा सफलता हासिल नहीं हुई थी ।
खिज्र खां ने ताज उल मुल्क को अपना वजीर बनाया था ।
सर्वप्रथम खिज्र खां ने दिल्ली के सरदारों को उपाधियां देकर उन्हें संतुष्ट करने का प्रयास किया लेकिन इसमें भी उसे ज्यादा सफलता हासिल नहीं हुई ।
खिज्र खां ने मेवात, नागौर, चंदावर, बयाना, ग्वालियर, बदायूं, कटेहर और इटावा पर आक्रमण किए परिणाम स्वरूप कुछ स्थानों पर उसे सफलता हासिल हुई और अन्य राज्यों पर उसका सीधे नियंत्रण स्थापित नहीं हो सका बल्कि वहां के राजाओं ने कर देना स्वीकार कर लिया।
20 मई 1421 को खिज्र खां की मृत्यु हो गई थी ।
खिज्र खां का शासनकाल 1414 – 1421 के मध्य में था |