पानीपत का प्रथम युद्ध
पानीपत का प्रथम युद्ध जिसे बाबर ने जीता, भारतीय इतिहास में विशेष महत्व रखता है। पानीपत का प्रथम युद्ध बाबर और इब्राहीम लोदी के मध्य 1526 ई. में हुआ. ताजमहल, लाल किला, आगरा का किला तथा जामा मस्जिद जैसे न जाने कितने ही स्मारक होंगे जिनका पानीपत के प्रथम युद्ध से अत्यधिक गहरा संबंध है।अगर पानीपत का प्रथम युद्ध ना हुआ होता तो शायद यह इमारतें हमारे सामने आज उपस्थित ना होती। पानीपत का द्वितीय युद्ध ( 1556)
बाबर की महत्वाकांक्षा पानीपत के युद्ध के प्रमुख कारणों में सा एक है. पानीपत युद्ध के समय इब्राहीम लोदी दिल्ली का शासक था . पानीपत के युद्ध के बाद के बाद भारत में बाबर के नेतृत्व में मुगल वंश की स्थापना हुई। बाबर ने 21 अप्रैल 1526 में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को पानीपत के युद्ध में हराया। यह युद्ध पानीपत नामक स्थान पर लड़ा गया जो वर्तमान समय में हरियाणा राज्य में स्थित है जिसे बुनकरों का शहर नाम से भी जाना जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह क्षेत्र 12 वीं शताब्दी के बाद से उत्तरी भारत के नियंत्रण के लिए कई निर्णायक लड़ाइयों का स्थल रहा। महाभारत में पानीपत का पुराना नाम पांडवप्रस्थ मिलता है जो आगे चलकर पानीपत हो गया।पौराणिक ग्रंथों के अनुसार पांडवप्रस्थ महाभारत के समय पांडव बंधुओं द्वारा स्थापित 5 नगरों में से एक था।
जहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर तैमूरलंग का वंशज था जो इतिहास में अपनी क्रूरता के कारण कुख्यात है जिसने पहले 1398 में नसीरूद्दीन महमूद तुगलक के शासन काल में दिल्ली पर आक्रमण किया था तथा बर्बरता की सारी हदें पार कर दी थी और अत्यधिक मात्रा में नरसंहार किया था। बाबर ने इस युद्ध में लोदी वंश के अंतिम शासक इब्राहिम लोदी को पराजित किया तथा उसकी हत्या कर दी गई इसके बाद बाबर ने आगरा और दिल्ली पर अधिकार कर लिया तथा भारत में मुगल वंश की स्थापना की। अपनी भारत विजय के उपलक्ष्य में बाबर ने काबुल के प्रत्येक व्यक्ति को एक चांदी का सिक्का दिया और उसकी इस उदारता के कारण उसे कलंदर की उपाधि दी गई।
समरकंद को दोबारा हारने के बाद बाबर ने भारत की ओर ध्यान दिया और वह 1519 ई. में चिनाब नदी के किनारे पहुंचा। 1524 ई. तक उसका उद्देश्य केवल अपने साम्राज्य को पंजाब तक फैलाना था क्योंकि यह उसके पूर्वज तैमूर के साम्राज्य के अंतर्गत आता था। उस समय उत्तर भारत इब्राहिम लोदी के शासन के अंतर्गत था लेकिन उसका साम्राज्य प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा था। इसी समय उसे पंजाब के गवर्नर दौलत खान लोदी और इब्राहिम के चाचा अलाउद्दीन द्वारा दिल्ली पर आक्रमण करने का निमंत्रण मिला।
भारत में लड़ा गया यह अब तक का ऐसा पहला युद्ध था जिसमें तोपों का प्रयोग हुआ था इसके अतिरिक्त बाबर ने बारूद और आग्नेय अस्त्रों का भी प्रयोग किया। उसने युद्ध में तुगलमा रणनीति का भी प्रयोग किया था। इस रणनीति के तहत सैनिकों को एक विशेष तरीके से तैनात किया जाता है। इस युद्ध में आसपास के हिंदू राजपूत राजाओं ने भाग नहीं लिया। लेकिन माना जाता है कि ग्वालियर के कुछ तोमर राजपूत राजा इब्राहिम लोदी की ओर से लड़े थे किंतु वे भी पराजित हुए। इस युद्ध में इब्राहिम लोधी के लगभग 15000 सैनिक मारे गए।
इब्राहिम लोदी के पास एक बड़ी सेना थी फिर भी वह बाबर से हार गया।बाबर द्वारा तोपों का प्रयोग उसे युद्ध में विजय दिलाने में मददगार साबित हुए।कहां जाता है कि तोपों की आवाज इतनी तेज थी कि उसने इब्राहिम लोदी के हाथियों को डरा दिया और लोदी के हाथियों ने उसके ही सैनिकों को रौंद डाला। बाबर द्वारा प्रारंभ की गई नई युद्ध रणनीति तुगलमा और अराबा थी।तुगलमा रणनीति में पूरी सेना को दाएं, बाएं और केंद्र जैसी तीन इकाइयों में विभाजित किया जाता था। यही कारण है कि बाबर की छोटी-सी सेना लोदी के सैनिकों को घेरने में समर्थ हो पाई। इब्राहिम लोदी युद्ध में ही मारा गया। बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में लिखा है कि इब्राहिम लोदी की सेना में लगभग 100000 सैनिक थे और कम से कम 1000 हाथी थे। किंतु बाबर द्वारा यह दावा इतिहासकारों द्वारा संदेहास्पद माना गया है। क्योंकि इब्राहिम लोदी की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह इतनी बड़ी सेना का रखरखाव कर सकें क्योंकि उसके शासनकाल में क्षेत्रीय हिंदू राजा काफी प्रभावशाली हो गए थे और उसका साम्राज्य दिल्ली से लाहौर के बीच सिमट चुका था।
बाबर ने यूं ही भारत पर आक्रमण नहीं किया बल्कि उसे लोदी वंश के एक विद्रोही दौलत खान लोदी तथा मेवाड़ के शासक राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था। इब्राहिम लोदी के समय दौलत खान लोदी लाहौर का गवर्नर था। वह इब्राहिम लोदी के चाचा के साथ उसके विरुद्ध षड्यंत्र में मिला हुआ था। दूसरी तरफ इब्राहिम लोदी भी दौलत खान के इरादों को अच्छे से समझने लगा था और उसने दौलत खान लोदी को गवर्नर के पद से हटाने का विचार किया। दौलत खान लोदी को यह बात पता चलते ही उसने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए 1924 में संदेश भेज दिया।इन लोगों को लगता था कि बाबर इब्राहिम पर आक्रमण करके लूटपाट करके यहां से चला जाएगा लेकिन जैसा कि कहा जाता है जो दूसरों के लिए कुआं खोदता है सबसे पहले स्वयं उसमें गिरता है। बाबर के भारत पर आक्रमण से राणा सांगा और दौलत खान लोदी की सत्ता भी समाप्त हो गई। लाहौर जीतने के बाद बाबर ने उसे दौलत खान को ना देकर स्वयं उस पर कब्जा जमा लिया। बाबर ने यहां पर अपनी सत्ता स्थापित कर ली।
पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर की जीत उसके लिए भारत में एक निर्णायक विजय थी। इस युद्ध के परिणाम स्वरूप बाबर को नई भूमि प्राप्त हुई जहां उसने भारतीय उपमहाद्वीप में लंबे समय तक शासन करने वाले मुगल साम्राज्य की स्थापना की। इस युद्ध में बाबर की विजय के साथ ही उसका राणा सांगा के साथ 1527 ई. में खानवा का युद्ध होना भी तय हो गया।