यदि आप अपनी जिह्वा पर नियंत्रण कर पाए तो इनसे कुछ दूरी बनाने में ही अच्छा है
सड़क के किनारे नाली के उस पार एक छोटा सा स्टाल था। स्थान गंदगी से परिपूर्ण प्रतीत हो रहा था। मच्छर और मक्खी भिनभिना रहे थे। चार पांच लोग अपने-अपने बारी के इंतजार में खड़े थे। पहले ग्राहक के मुंह में गोलगप्पा जाते ही क्रम से पांचवें स्थान पर खड़े व्यक्ति के मुंह से मानो लार का समुद्र टपक रहा था। वहां पर खड़े सभी की बेचैनी देखने लायक थी। गोलगप्पे वाला जल्दी-जल्दी कर रहा था ताकि सबको शीघ्र संतुष्ट किया जा सके। भीड़ कुछ ज्यादा ही थी इसलिए गोलगप्पा खाने के बाद दूसरी बार नंबर आने में काफी समय लग रहा था।
उस छोटे से दुकान का मालिक जो गोलगप्पा दे रहा था उसका शरीर भी अस्त-व्यस्त लग रहा था। उसके शक्ल को देखकर ही कुछ लोग उसके दुकान से दूर भाग जाते।लेकिन कुछ लोग जो अपने जीभ पर आसानी से नियंत्रण नहीं कर पाते हैं उस गंदे स्थान की ओर खींचे चले जाते हैं। गोलगप्पा खाने की चाहत में वे अपने सफाई को तिलांजलि दे देते हैं। हमारे गिलास के पानी मे गलती से किसी की उंगली भी चली जाए तो हम उस पानी को नहीं पीते हैं। लेकिन यहां पर गोलगप्पे वाला गोलगप्पे के पानी में अपने पूरे हाथ को डालकर गोलगप्पा तैयार कर रहा था लेकिन वहां पर लोगों को गंदगी प्रतीत नहीं हो रही थी।गोलगप्पे का आकर्षण उस समय वहां पर चुंबक के आकर्षण से भी ज्यादा प्रतीत हो रहा था।
ग्राहकों के हाथ से पैसा लेने के बाद बिना हाथ धोए वह पुनः लोगों को गोलगप्पा परोसने लग रहा था।पैसे में इतनी गंदगी लगी होती है कि उसे छूने के बाद मुझे लगता है हमें बिना हाथ धोए कुछ भी खाद्य सामग्री अपने मुंह तक नहीं ले जाना चाहिए। क्योंकि आप जानते हैं लोग पैसे को कहां-कहां रखते हैं।वह कितने लोगों के हाथों से होकर कहां-कहां पहुंचता है, आप कल्पना कर सकते हैं। अतः इस प्रकार पैसा कितना शुद्ध हो जाता है यह आपको बताने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए ऐसे स्थानों से दूर रहने के लिए मुझे अपनी जिह्वा पर अत्यधिक नियंत्रण रखना पड़ता है।
एक बार मैं एक समोसे की दुकान से समोसा खाकर बाहर निकला। दुकान के बाहरी तरफ ही हलवाई समोसा छान रहा था। उसी हाथ से समोसा भी बना रहा था तथा साथ ही साथ खैनी भी रगड़ रहा था। जब मैंने उसको टोका तो उसने बड़ी निर्लज्जता से बोला है कि सब चलता है कोई दिक्कत नहीं।
एक बात मैंने ध्यान दिया है कि यह जो गोलगप्पे चाट पकौड़ी वाले होते हैं उनके अंदर सफाई के प्रति संवेदनशीलता कम होती है।यदि वह लोग सफाई की ओर ध्यान दें तो उनके यहां ग्राहक अधिक आएंगे और उनका व्यापार बढ़ेगा।लेकिन इन मूर्खों के अंदर इतनी भी समझ नहीं होती है और वे लोगों को कुछ खिलाते हैं लेकिन अपने ही स्टाल के पास गंदगी का अंबार लगाए रहते हैं। कई लोग तो कूड़ेदान भी नहीं रखते हैं।अंततः यह भी कहा जा सकता है कि यदि इनके अंदर इतनी ही सोचने समझने की शक्ति होती तो यह किसी अन्य उच्च पद पर आसीन होते हैं ना कि सड़क के किनारे स्टाल लगाकर ऐसा कार्य कर रहे होते।
भले ही ऐसे मूर्ख लोगों को यह बात ना समझ में आए लेकिन अवश्य इन कारणों से इनका व्यापार प्रभावित होता है। दिन भर हाथ में मोबाइल लिए रहेंगे और उसी हाथ से ग्राहकों को समोसा देने लगते हैं।लेकिन जो लोग घर पर भी बिना हाथ धोए खाना खा लेते हैं उन्हें इन लोगों के ऐसी आदतों से क्या मतलब।
पान खाने की समस्या पर भी विचार कर लेना महत्वपूर्ण है।मैंने कई ऐसे चाट और गोलगप्पे वालों को देखा है जो मुंह में पान दबाए रहते हैं और लोगों को गोलगप्पा और चाट बनाकर देते रहते हैं।हो सकता है कि रक्त वर्ण शीतल द्रव उसके लबों से अंगड़ाइयां लेते हुए लेते हुए आपके गर्म चाट में आ जाए और वह मीठी चटनी का काम कर दे जो लाल रंग का होता है।हालांकि चाट के पहले ही अंश को खाते समय आपको उसकी सत्यता का पता चल जाएगा।
माना कि स्वच्छ भारत अभियान के समय देश की स्वच्छता के लिए बहुत लोग रुचि नहीं लेते हैं क्योंकि उसमें उनका कुछ पर्सनल स्वार्थ नहीं दिखता है। किंतु दुनिया में हर व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए सचेत हैं। किंतु ऐसे छोटे-मोटे दुकानदार लगता है इन बातों से अनभिज्ञ है। क्योंकि स्वार्थी तो वह भी हैं लेकिन उनकी बुद्धिमत्ता ही उस स्तर की नहीं है कि वे इन बातों को सोच सकें।
जब मैं विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहा था तो एक बार हॉस्टल से बाहर अपने मित्र के साथ ऐसे ही एक स्टाल पर गया। जब चाट वाले ने हमें कुछ सामग्री खाने को दे तब मैंने अपने मित्र से कहा कि यदि यह सफाई से कार्य करता तो इसके यहां ज्यादा ग्राहक आते। तब मेरे मित्र ने बड़ा अच्छा उत्तर दिया कि यदि इसे इतना ही दिमाग होता तो यह यहां ना होता बल्कि b.ed कर रहा होता।
कई बार जब हम एक सामान्य से भोजनालय में भोजन करने जाते हैं और हमारे पास एक बच्चा पानी का गिलास लेकर आता है जिसका ना तो गिलास साफ रहता है ना ही हाथ। ऐसी स्थिति में कभी-कभी तीव्र प्यास होने पर भी पानी पीने का मन नहीं करता।