वैदिककालीन समाज
वैदिककालीन समाज की जानकारी हमें ऋग्वेद से मिलती है . ऋग्वेद प्रारंभिक वैदिक काल से संबंधित है और भारतीय इतिहास को जानने का सबसे प्राचीन लिखित स्त्रोत ऋग्वेद ही है। ऋग्वेद की रचना किसी व्यक्ति विशेष ने नहीं की है अपितु यह प्रार्थना और श्लोकों का एक ऐसा संकलन है जिसकी रचना बहुत से कवियों तथा महाऋषियों के परिवारों ने देवताओं के सम्मान में की थी।
ऋग्वेद में कुल लगभग 10600 श्लोक (ऋचाएं) हैं। ऋग्वेद में 1028 सूक्त हैं जिन्हें 10 मंडलों (पुस्तकों) में विभाजित किया गया है। इनमें से 2-7 तक के मंडल पहले के माने जाते हैं तथा मंडल 1 और 8-10 को बाद में रचित माना गया है। विद्वानों के अनुसार ऋग्वेद की रचना 1500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व के मध्य हुई थी।
ऋग्वेद में कुल कितनी नदियों का उल्लेख मिलता है
गायत्री मंत्र का उल्लेख कहाँ हुआ है
वेद शब्द संस्कृत के ‘विद’शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ होता है जानना, ज्ञान होना। अर्थात वेद ज्ञान का एक स्त्रोत है। वेद को पढ़ने से हमें ज्ञान प्राप्त होता है। वेदों को श्रुति भी कहा जाता है जिसका तात्पर्य है सुनकर ज्ञान प्राप्त करना।
माना जाता है कि ऋग्वेद के संकलन से पूर्व इसके श्लोक मौखिक परंपरा से आगामी पीढ़ियों को हस्तांतरित हुए थे इसलिए सुनकर इनका ज्ञान किया जाता था यही कारण है कि ऋग्वेद के रचना को किसी काल क्रम में बांधना दुष्कर कार्य है।
भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में चार वेद हुए हैं जिनमें से ऋग्वेद सबसे प्राचीन वेद है। ऋग्वेद से हमें भारतीय इतिहास के सबसे प्राचीन समय के परिवेश के बारे में स्पष्ट जानकारी मिलती हैं। वेद के श्लोकों को ऋचाएं भी कहा जाता है।
ऋग्वेद का हर एक मंडल किसी एक परिवार या कबीले के नाम पर आधारित है जिन्होंने इन पुस्तकों में सम्मानित सुक्तो की रचना की थी।
वेदों के लिए अपौरुषेय शब्द का भी प्रयोग किया जाता है जिसका अर्थ है पुरुष द्वारा नहीं। इसका तात्पर्य है कि वेद पुरुषों द्वारा नहीं रचे गए बल्कि इनको एक दिव्य प्रकटन के रूप में देखा गया जो ऋषियों द्वारा सुने गए थे और वेदों के लिए संहिता शब्द का प्रयोग उस समय की मौखिक परंपरा का प्रतीक हैं।
अतः हम कह सकते हैं कि मौखिक रूप से वेद के श्लोक कई पीढ़ियों को हस्तांतरित हुए उसके बाद धीरे-धीरे इनका संकलन पुस्तकों के रूप में किया गया। युद्ध में विजय, लंबा जीवन, रोगों से मुक्ति, मवेशियों, घोड़ो, भोजन की उपलब्धता तथा पुत्र प्राप्ति जैसी कामनाओं की पूर्ति के लिए ऋग्वेद में देवताओं के सम्मान में श्लोकों की रचना की गई है। यह तथ्य हमें नहीं भूलना चाहिए आरंभिक वैदिक काल के समय आर्य लोग कबीले के समान जीवन व्यतीत करते थे और पशुपालन उनका प्रमुख व्यवसाय था।
ऋग्वेद में गाय को सबसे प्रमुख पशु माना गया है।गाय के लिए ऋग्वेद में कई शब्दों का प्रयोग किया गया है। गाय को अघन्या कहा गया है अर्थात जिसकी हत्या नहीं की जानी चाहिए।गाय की हत्या करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान था।
पशुपालन के महत्व का ऋग्वेद में काफी बड़े स्तर पर वर्णन हुआ है। पालतू पशु संपन्नता के प्रतीक माने जाते थे और एक संपन्न व्यक्ति जो पालतू पशुओं का स्वामी होता था उसे गोमत कहा जाता था। ऋग्वेद में संघर्ष और लड़ाईयों के लिए कुछ शब्दों का प्रयोग किया गया है जैसे गविष्टि, गवेश्ना,गवयत।
अतः कहा जा सकता है कि गायों पर एकाधिकार करने के लिए कबीलों के मध्य संघर्ष होता था। समय और दूरी को बताने के लिए प्रयुक्त शब्द क्रमशः गोधूलि और गव्यूति की उत्पत्ति भी ग से होना इस तथ्य का परिचायक है कि आर्यों का प्रमुख कार्य गौ-पालन था।
पुत्री को दुहिता कहा गया क्योंकि वह दूध दुहने का कार्य करती थी। जो लोग अपनी गायों के साथ एक ही गोष्ट में रहते थे उनको उसी गोत्र का माना जाने लगा, इस प्रकार गोत्र की अवधारणा हमारे सामने आती है। गांव के सबसे धनी व्यक्ति को गौमान कहा जाता था।
ऋग्वेद में चरागाह, गौशाला, दुग्ध उत्पादन और पालतू जानवरों से संबंधित संदर्भ प्रचुर मात्रा में पाए गए हैं अत: कहा जा सकता है कि गौ को कुल देवता के रूप में आर्यों द्वारा पूजा जाता था। गाय की हत्या करने वाले को समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता था।
ऋग्वेद में गाय के अलावा अश्व(घोडा़) एक महत्वपूर्ण पशु है। चारागाहों की खोज व युद्ध में घोड़ा एक प्रमुख भूमिका निभाता था। घोड़े की पीठ पर बैठकर पशुओं को हांकना भी आसान होता था। ऋग्वेद में पशुपालन की तुलना में कृषि गतिविधियों से जुड़े हुए साक्ष्य अत्यंत कम मिलते हैं।
उत्तर वैदिक कालीन ग्रंथों में हमें कृषि के साक्ष्य मिलते हैं। ऋग्वेद में लोहे का प्रयोग करने का उल्लेख नहीं मिलता बल्कि पत्थर के बने हुए औजार प्रयोग करने का वर्णन हुआ है।ऋग्वेद के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि तत्कालीन समाज कृषि पर आधारित स्थाई जीवन नहीं बिता रहा था बल्कि पशुपालन के रूप में वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचरण करते रहते थे।
ऋग्वेद में पणिस् शब्द का प्रयोग हुआ है जो आर्यों के शत्रु थे और गायों को जंगल और पहाड़ों में छुपा देते थे और इन पशुओं को छुड़ाने के लिए इंद्र देवता की पूजा होती है।
ऋग्वेद में फसल के रूप में हमें केवल यव(जौ) का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद में इंद्र को सबसे शक्तिशाली देवता माना गया है जो वर्षा के देवता हैं। इंद्र का एक अन्य नाम पुरंदर (किलो को नष्ट करने वाला) है।पुरंदर शब्द से इतिहासकार यह अनुमान लगाते हैं कि जब आर्य भारत में आए तो उनका यहां के लोगों के साथ युद्ध हुआ और स्थानीय लोगों के घरों को नष्ट करने वाले देवता के रूप में आर्यों ने इंद्र की पूजा की जिसका उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है। गायों के रक्षक के रूप में भी वैदिक देवता इंद्र की पूजा की जाती थी। इंद्र के बाद दूसरे महत्वपूर्ण देवता अग्नि हैं जो शुद्धता के देवता माने जाते हैं।
ऋग्वेद में सप्त सैंधव प्रदेश का उल्लेख मिलता है इसका तात्पर्य है सिंधु और उसकी सहायक नदियों का प्रदेश जिसमें वर्तमान का पंजाब, राजस्थान और पाकिस्तान का सिंध प्रांत तथा गुजरात आदि हैं। आर्य यहीं पर आकर बसे थे और ऋग्वेद में सिंधु नदी को सबसे प्रमुख नदी माना गया है।