हेमू (हेमचंद्र विक्रमादित्य) कौन था
हेमू (हेमचंद्र विक्रमादित्य)अल्पकाल के लिए मध्यकाल का एक प्रमुख हिंदू सम्राट था बना था जिसके बारे में ऐतिहासिक गलियारों में चर्चाएं कम ही होती हैं। केवल हमारे सामने इतना ज्ञान है कि पानीपत के द्वितीय युद्ध में अगर उसके आंख में तीर ना लगी होती तो भारत का इतिहास कुछ दूसरी प्रकार से ही लिखा गया होता।
हेमू का जन्म राजस्थान के अलवर जिले में हुआ था लेकिन उनकी शिक्षा-दीक्षा वर्तमान हरियाणा के रेवाड़ी में हुई थी।
हेमू की शिक्षा एक धार्मिक वातावरण में हुई थी और उसे हिंदी, संस्कृत, फारसी आदि कई भाषाओं का ज्ञान था।
हेमू एक अच्छा घुड़सवार था तथा उसे उन्नत घोड़ों के बारे में अच्छा ज्ञान था। तोपों के संचालन और निर्माण में भी उसका ज्ञान उन्नत था। इस्लाम शाह का प्रधानमंत्री बनने के बाद उसने राज्य की सुरक्षा के लिए तोपों के निर्माण और संग्रह में तेजी दिखाई।
सर्वप्रथम हेमू 1530 में अफगान अधिकारियों के संपर्क में आया था। 1545 में इस्लाम शाह के शासक बनने पर हेमू को बाजार अधीक्षक बनाया गया और कुछ समय बाद उसे गुप्तचर विभाग का मुखिया भी बनाया गया। लगातार हेमू का पद और कद बढ़ रहा था।
मई 1545 में शेरशाह ने कालिंजर के किले को जीतने के लिए कीरत सिंह चंदेल के विरुद्ध अभियान किया था। किंतु बारूद का एक गोला किले से टकराकर शेरशाह के सैन्य दल पर ही गिर गया था जिससे शेरशाह की मृत्यु हो जाती है इस प्रकार कालिंजर के किले को जीतने के क्रम में शेरशाह की मृत्यु के बाद सूर साम्राज्य पतन की ओर अग्रसर हो गया था।
अब कोई ऐसा राजा नहीं था जो शेर शाह सूरी की तरह परम पराक्रमी हो और सूर साम्राज्य को आगे ले जा सके। सुर साम्राज्य में ही एक साधारण सैनिक के पद पर रहते हुए हेमू अपनी योग्यता से सूर वंश के अंतिम सम्राट के शासनकाल में प्रधानमंत्री पद तक पहुंच गया था। मोहम्मद आदिल शाह के शासनकाल में राज्य की वास्तविक सत्ता हेमू के हाथ में आ गई।
हेमू एक बनिया था और वह नमक का व्यापार करता था। और शीघ्र ही वह सम्राट बन गया और उसने हेमचंद्र विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। कुछ समय तक उसने दिल्ली और आगरा पर शासन भी किया था।
अगर पीछे का इतिहास देखें तो हमें पता चलता है कि 1526 में पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ तो इब्राहिम लोदी की हत्या करके बाबर ने भारत में मुगल वंश की स्थापना की।
लेकिन बाबर दिल्ली पर अधिक दिनों तक शासन नहीं कर सका और 1530 में उसकी मृत्यु हो गई।
बाबर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र हुमायूं दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
लेकिन 1540 में कन्नौज के युद्ध में शेरशाह से पराजित होने के बाद उसे दिल्ली छोड़कर भागना पड़ा।
कई वर्षों तक भटकने के बाद उसे पुनः दिल्ली की गद्दी प्राप्त करने का अवसर मिला।
जैसा कि हमें ज्ञात है की शेरशाह की मृत्यु के बाद सुर साम्राज्य पतन की ओर अग्रसर हो चला था।
22 जून 1955 में हुमायूं और सिकंदर शाह सूर के मध्य सरहिंद का युद्ध हुआ और इस युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद एक बार पुनः हुमायूं ने दिल्ली में मुगल वंश की स्थापना की। अतः 1555 में हुमायूं पुनः दिल्ली का सम्राट बन बैठा लेकिन पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरने के कारण शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो जाती है।
हुमायूं की मृत्यु के बाद उसके पुत्र अकबर की उम्र केवल 12 से 13 साल की थी और बैरम खान को उसका संरक्षक बनाया गया।
इधर अफ़गानों ने बिहार में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी। सूर वंश के शासक अफगान थे। हेमू अपनी योग्यता से हुमायूं के विरोधी खेमे का नेतृत्व कर रहा था।
हुमायूं की मृत्यु के बाद मुगलों को भारत से खदेड़ने के लिए आगे बढ़ा और पानीपत के द्वितीय युद्ध में अकबर और हेमू का सामना हुआ।
कहा जाता है कि पानीपत का द्वितीय युद्ध अकबर और हेमू के मध्य हुआ था किंतुएक बात यहां स्पष्ट कर देना उचित होगा कि युद्ध के मैदान में अकबर उपस्थित ही नहीं था।
बैरम खान ने कुछ हजार सैनिकों के साथ हुमायूं का युद्ध भूमि से लगभग 12 से 13 किलोमीटर की दूरी पर सुरक्षित रखा था।
उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया था कि यदि युद्ध में हमारी हार होती है तो अकबर को लेकर वे फरगाना गाना चले जाएं।
बैरम खान को तनिक भी आशा नहीं थी कि युद्ध में मुगलों को विजय प्राप्त हो सकती है क्योंकि हेमू की स्थिति मजबूत थी।
युद्ध से पहले हेमू के साथ एक दुर्भाग्य हुआ कि हेमू के तोप मुगलों के हाथ लग गए हैं। फिर भी हेमू ने विश्वास के साथ युद्ध जारी रखा और मुगल पराजय के निकट थे।
लेकिन अचानक एक तीर आकर हेमू की आंख में लग जाता है और वह अपने हाथी से गिर जाता है। सम्राट को अपने हाथी से गायब देख सेना में भगदड़ मच जाती है और इस प्रकार यह युद्ध हारते हारते मुगल जीत जाते हैं।
हेमू का सिर काट दिया जाता है और उसके शरीर को दिल्ली की सड़कों पर घुमाया जाता है ताकि लोगों में भय व्याप्त हो सके कि अगर वह मुगलों के खिलाफ खड़े होंगे तो उनका भी यही परिणाम होगा।
हारे हुए अन्य सैनिकों का भी सिर काटकर उनकी मीनार बनाई जाती है।
जैसा कि हमें ज्ञात है मुगल वंश का शासक बाबर तैमूर का वंशज था तो तैमूर के समय से ही है परंपरा थी कि वह अपने शत्रुओं का सिर काट करके उनका मीनार बनाते थे। बाबर ने भी पानीपत के प्रथम युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद शत्रुओं का सिर काटा और दिल्ली में उनकी मीनारें बनवाई।
मीनार बनवाने से तात्पर्य है एक के ऊपर एक कटे सिर को रखना ताकि शत्रु के अंदर भय उत्पन्न किया जा सके।