इतिहास की कुछ महामारियां जिन्होंने कई मानव बस्तियों को वीरान कर दिया।

कोरोना के कहर ने दुनिया को डरा कर रख दिया है। यह एक वैश्विक महामारी बन चुकी है। चीन के वुहान शहर से प्रारंभ हुई यह महामारी अब पूरी दुनिया में फैल चुकी है। लगातार संक्रमितों की संख्या बढ़ती जा रही है। लेकिन कोरोना इस तरह की पहली महामारी नहीं है।इससे पहले भी इतिहास में कई ऐसी महामारी हुई हैं जिन्होंने कई प्राचीन शहरों को वीरान कर दिया। आइए जानते हैं धरती पर ऐसे ही घटित हो चुकी कुछ महामारियों के बारे में…

एथेंस की महामारी (430-426 B.C.)

अभिलेखों में दर्ज इसे इतिहास की प्रारंभिक महामारियो में प्रमुख माना जाता है जो पेलोपोनेशियन युद्ध के समय उत्पन्न हुआ था। लिबिया, इथोपिया तथा इजिप्ट से होती हुई यह महामारी एथेंस तक पहुंच गई थी। इस महामारी के कारण एथेंस के लगभग दो तिहाई जनता मर गई। ग्रीस के अवनति में इस महामारी ने मुख्य भूमिका निभाई।

इस महामारी के लक्षणों में बुखार, प्यास खूनी उल्टी, लाल त्वचा तथा फोड़े दिखाई देते थे। यह अनुमान लगाया गया कि यह बीमारी एक टाइफाइड ज्वर था। इस बीमारी ने एथेंस वासियों को काफी हद तक कमजोर कर दिया जो स्पार्टन द्वारा उनकी पराजय में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

ब्लैक डेथ (1347-1350)

चूहों द्वारा फैले इस प्लेग ने यूरोप के लगभग आधी आबादी को समाप्त कर दिया। इस प्लेग की उत्पत्ति एशियाई देश चीन में मानी जाती हैं जहां से यह व्यापारिक जहाजों द्वारा होता हुआ इटली के सिसली नगर तक १३४७ में पहुंचा। जब प्लेग से ग्रसित लोग मेसीनो के बंदरगाह पर पहुंचे तो वहां से यह पूरे यूरोप में फैल गया। हर गली घर और सड़क पर मरे हुए लोग सामान्य बात हो गई तो हर जगह लाशें सड़ रही थी और शहर दुर्गंध से भर चुके थे। हर जगह हाहाकार मचा हुआ था।इंग्लैंड और फ्रांस इस प्लेग के कारण इतने कमजोर हो गए थे कि दोनों ने युद्ध विराम का निर्णय लिया।

इस प्लेग के कारण मनुष्य की आबादी कम हो गई तथा मजदूर महंगे हो गए हैं और इसने ब्रिटेन के सामंतवादी व्यवस्था को धराशाई कर दिया। यूरोप की अर्थव्यवस्था चरमरा गई। इस प्लेग के कारण यूरोप में बहुत बड़ा परिवर्तन आ गया।जो बचे हुए मजदूर थे अब उन्हें अच्छा खाना और वेतन मिलने लगा तथा उनका शोषण भी कम हो गया। संभवत यही समय था जब मजदूरों की कमी के कारण मशीनों पर जोर दिया जाने लगा।

लंदन का प्लेग (1665)

इस भयानक प्लेग के कारण लंदन की लगभग 20% आबादी की मौत हो गई। जैसी जैसी मृतकों की संख्या बढ़ने लगी सामूहिक कब्रें खुदने लगीं। इस महामारी के संभावित कारण के रूप में लाखों कुत्तों और बिल्लियों को मार दिया गया। लंदन की सबसे भयानक महामारियो में रही यह महामारी 1666 के पततझड़ में लगभग समाप्त हो गई जब उसी समय लंदन में एक भयानक अग्निकांड की घटना हुई थी जिसे इतिहास में द ग्रेट फायर ऑफ लंदन के नाम से भी जाना जाता है।

रूस का प्लेग (1770-72)

इसे 1771 के प्लेग के नाम से भी जाना जाता है जो केंद्रीय रूस का सबसे अंतिम और भयानक प्लेग था जिसमें केवल मास्को में ही लगभग एक लाख लोगों की मौत हुई। इसकी उत्पत्ति टर्की और रूस के युद्ध के समय ही जनवरी 1770 में मोल्डोवान में हुई थी जो उत्तरी यूक्रेन से होता हुआ केंद्रीय रूस और उसके बाद मास्को में भयानक तबाही के रूप में सामने आया जो सितंबर 1771 के प्लेग दंगों का कारण भी बना। इस महामारी ने मास्को के नक्शे को ही बदल डाला क्योंकि बहुत ज्यादा नए कब्रिस्तान बनाने पड़े।

संभवतया इतिहास का ऐसा पहला प्लेग या महामारी था जिसके कारण दंगे की स्थिति भी उत्पन्न हो गई। सितंबर 1771 में ही 20000 लोगों की मौत हो गई। स्थिति अनियंत्रित होता देख अधिकारियों ने शहरवासियों के घर से बाहर निकलने पर रोक लगा दिया और उन्हें घर में ही रहने को कहा गया। सभी दुकान, फैक्ट्री, चर्च सराय, स्कूल आदि बंद करा दिए गए ताकि महामारी को फैलने से रोका जा सके। लोगों को एक दूसरे से मिलने पर रोक लगा दिया गया। सब काम धंधे बंद हो गए।मास्को में आपातकाल की घोषणा कर दी गई। लेकिन जनता ने इसे अधिकारियों द्वारा महामारी को और फैलाने का षड्यंत्र समझा। शहर के मुख्य पादरी ने एक अत्यधिक सम्मानित मूर्ति को शहर के बीच से हटवा दिया ताकि भीड़ के कारण महामारी बढ़े न। लेकिन उसे जनता का दुश्मन घोषित करते हुए उग्र भीड़ द्वारा उसकी हत्या कर दी गई और 3 दिनों तक शहर में दंगे की स्थिति बनी रही। अंततः सैनिकों द्वारा उस पर नियंत्रण पाया गया और अक्टूबर के अंत तक महामारी लगभग समाप्त हो गई।

तीसरी कालरा महामारी (1852-1860)

अब तक की सात कालरा महामारियों में यह महामारी सबसे भयानक थी। कालरा का तीसरा दौर 1852 से 1860 तक रहा। पहले और दूसरे कालरा महामारियों की तरह इस महामारी का प्रारंभ भी भारत में हुआ था। भारत के उत्तर के मैदानी भागों से होती हुई यह महामारी एशिया, यूरोप, उत्तरी अमेरिका और अफ्रीका तक फैल गई और लगभग दश लाख लोगों की मृत्यु का कारण बनी। ब्रिटेन के चिकित्सक जॉन स्नो ने लंदन के गरीब इलाकों में कार्य करते हुए अंततः यह पता लगाने में सफलता हासिल की कि दूषित पानी के कारण यह बीमारी फैल रही है। ग्रेट ब्रिटेन में 1854 में इस बीमारी के कारण 23000 लोग दिवंगत हुए।

रशियन फ्लू(1889)

यह प्रथम व्यापक फ्लू की महामारी थी जो साइबेरिया और कजाकिस्तान में प्रारंभ हुई तथा वहां से मास्को पहुंचा उसके बाद फिनलैंड और पोलैंड तक होते हुए पूरे यूरोप में फैल गया। उसी साल समुद्र को पार करते हुए अमेरिका और अफ्रीका में भी फैल गया। 1890 के अंत तक 360000 लोग इसका शिकार हो चुके थे।

स्पेनिश फ्लू (1918-20)

स्पेनिश फ्लू जिसे 1918 के फ्लू महामारी के नाम से भी जाना जाता है एक भयानक इन्फ्लूएंजा की महामारी थी।जनवरी 1918 से दिसंबर 1920 के बीच इस महामारी ने उस समय विश्व की पूरी जनसंख्या के लगभग एक चौथाई लोगों को संक्रमित कर दिया था। इसे इतिहास की एक बड़ी महामारियों में से एक माना जाता है। इस फ्लू के कारण पृथ्वी पर लगभग 5 करोड़ लोगों को अपने जान गंवाने पड़े थे। अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में ही लगभग 675000 लोगों की मौत हुई थी। 5 वर्ष से कम 20 से 40 वर्ष के बीच और 65 वर्ष से ऊपर वालों में मृत्यु दर अधिक होना इस महामारी की खास विशेषता थी। निकटतम इतिहास की सबसे भयंकर महामारी थी। पक्षियों से उत्पन्न H1N1 वायरस इस बीमारी का कारण था।

यद्यपि आज तक इस बात पर सार्वभौमिक सहमति नहीं बन पाई है कि इस विषाणु की उत्पत्ति कहां हुई लेकिन यह पूरे विश्व में लगभग 1918 से 19 के बीच फैला। माना जाता है कि सबसे पहले 1918 के बसंत में अमेरिकी सैनिकों में इसकी पहचान हुई। अमेरिका सहित स्पेन के पड़ोसी देशों में भी इसे प्रारंभिक दौर में छुपाया गया। माना जाता है कि स्पेन में समाचार और प्रेस की अच्छी स्वतंत्रता थी इसी कारण सबसे पहले वहां पर अनजान कारण से हो रही मौतों को सामने लाया गया। तभी से इसे स्पेनिश फ्लू के नाम से जाना जाने लगा जबकि स्पेन में इस फ्लू का प्रारंभ नहीं हुआ था।

उस समय इसका कोई टीका उपलब्ध नहीं था तथा स्वास्थ्य की सुविधाएं भी इतनी अच्छी नहीं थी इस कारण इस महामारी से विश्व में अत्यधिक क्षति हुई। लोगों को अलग-थलग रखना, साफ सफाई, अच्छा भोजन और भीड़ भाड़ में ना जाना आदि ही इससे बचने के साधन थे। जहां पर इन बातों का ध्यान दिया गया वहां मृत्यु कुछ कम हुई अन्य स्थानों पर जहां लापरवाही बरती गई वहां अधिक लोग काल के गाल में समा गए। यद्यपि 1918 के H1N1 वायरस का अच्छी तरह अध्ययन कर लिया गया है फिर भी यह स्पष्ट नहीं है कि कौन से कारण थे जिन्होंने इसे इतना विनाशकारी बनाया।

एशियन फ्लू(1957)

हांगकांग से प्रारंभ होकर चीन होता हुआ एशियन फ्लू ने संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवेश किया इसके बाद इंग्लैंड में व्यापक हो गया जहां पर लगभग 6 महीने के अंदर ही 14000 लोग इसके शिकार हो गए। 1958 में इस महामारी के कारण विश्व में लगभग 1100000 लोग मर चुके थे जिसमें से 116000 केवल अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में थे। हालांकि इसके लिए टीका विकसित कर लिया गया जिससे इसके रोकथाम में सहायता मिली।

सार्स वायरस (2003)

सार्स का पूरा नाम Severe Acute Respiratory Syndrome है। इस विषाणु के आक्रमण पर श्वसन संबंधी गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाती है। सन 2003 में इसकी उत्पत्ति चीन से हुई थी। दक्षिणी चीन के गुआंगडोंग प्रांत में नवंबर 2002 में संक्रमण का पहला मामला सामने आया। इसकी उत्पत्ति भी चमगादड़ों से हुई थी। इस महामारी ने 26 देशों को प्रभावित किया और लगभग 8000 मामले सामने आए।इस वायरस से संक्रमित होने पर ज्वर, सिर दर्द, डायरिया और शरीर में कंपन आदि लक्षण दिखाई देते हैं। कई लोगों में यह लक्षण कुछ दिन तक अदृश्य भी रह सकते हैं। इस वायरस के कारण लगभग 800 लोगों की मौत हुई थी जिनमें से अकेले 700 केवल चीन में थे।

स्वाइन फ्लू (2009)

इसका प्रारंभ मेक्सिको से हुआ। इस महामारी का कारण H1N1 इनफ्लुएंजा वायरस था। सुअरों से मिलने वाले इनफ्लुएंजा वायरस के समानता के कारण शुरू में इसे स्वाइन फ्लू नाम दिया गया था। यह सूअरों से मनुष्यों में फैला था। इसका प्रकोप जनवरी 2009 से अगस्त 2010 तक रहा। स्पेनिश फ्लू के बाद यह H1N1 का दूसरा आक्रमण रहा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इस महामारी के कारण मरने वालों की संख्या 18000 है।स्वाइन फ्लू से ग्रसित होने पर इनफ्लुएंजा के समान ही ज्वर, सूखी खांसी सिरदर्द, हड्डियों में दर्द, गले में खराश नाक का बहना, डायरिया उल्टी आदि लक्षण दिखाई देते हैं। मांसपेशियों की समस्या से ग्रसित बच्चे इस बीमारी का ज्यादा शिकार हो रहे थे। सामान्य फ्लू की तरह यह भी खास नेवर छींकने से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल रहा था।

इबोला (2014-2016)

यह महामारी पश्चिमी अफ्रीका से फैली थी। दिसंबर 2013 में पहला मामला सामने आया था। गिनी के एक छोटे से गांव में 18 महीने का बच्चा चमगादड़ो द्वारा संक्रमित पाया गया। उसी क्षेत्र में घातक डायरिया के पांच और मामले जनवरी 24, 2014 को सामने आने के बाद जिला स्वास्थ्य अधिकारियों को अलर्ट जारी किया गया। शीघ्र ही यह बीमारी गिनी की राजधानी कोनाक्री में भी पहुंच गया। इस अज्ञात बीमारी के बारे में स्वास्थ्य मंत्रालय ने चेतावनी जारी कर दी। देखते ही देखते इसका फैला गिनी के पड़ोसी देशों लाइबेरिया और सिएरा लियोन में भी हो गया।

8 अगस्त 2014 को WHO ने इसे अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया।शीघ्र ही यह सात और देशों इटली, माली, नाइजीरिया, सेनेगल, स्पेन, यूनाइटेड किंग्डम तथा यूनाइटेड स्टेट्स तक पहुंच गया। इस महामारी के 28600 मामले सामने आए जिनमें 11325 की मौत हुई। अमेरिका में इबोला के 11 मामले सामने आए जो मुख्य रूप से स्वास्थ्य कर्मी थे जिन्होंने इन देशों में अपनी सेवाएं दी थी या जिन्होंने प्रभावित देशों की यात्रा की थी। 10 लोग ठीक हो गये जबकि एक की मौत हुई थी।

 

 

 

 

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