असहयोग आन्दोलन कब प्रारंभ हुआ था
असहयोग आंदोलन 1 अगस्त 1920 को प्रारंभ हुआ। असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में लाया गया था तथा इसे कोलकाता अधिवेशन में पारित किया गया था। महात्मा गांधी असहयोग आंदोलन के मुख्य नेता थे तथा उन्होंने देशवासियों से अंग्रेज सरकार का सहयोग ना करने का आग्रह किया।
महात्मा गांधी के आग्रह पर लोगों ने सरकारी नौकरियों से त्यागपत्र दे दिया तथा अनेक वरिष्ठ अधिवक्ताओं मोतीलाल नेहरू लाला लाजपत राय जवाहरलाल नेहरु चितरंजन दास एवं राजेंद्र प्रसाद आदि ने न्यायालयों का बहिष्कार किया।विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई तथा स्वदेशी का प्रचार किया गया।
विदेशी वस्त्रों की होली जलाने को रविंद्र नाथ टैगोर ने बर्बादी करार दिया।अंग्रेजों द्वारा खोले गए शिक्षण संस्थानों का बहिष्कार किया गया और राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों में प्रवेश को बढ़ावा दिया गया।
17 नवंबर 1921 को प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन का विरोध किया गया।अंग्रेज सरकार ने असहयोग आंदोलन का दमन करने के लिए पंडित मोतीलाल नेहरु, चितरंजन दास, लाला लाजपत राय मौलाना आजाद आदि प्रमुख क्रांतिकारी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन आंदोलन अपने पूरे जोरों पर चलता रहा।
इसी मध्य उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 5 फरवरी 1922 को चौरी चौरा कांड हुआ जिसमें आंदोलनकारियों ने एक पुलिस थाने को फूंक दिया जिसमें 22 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई।इस घटना से महात्मा गांधी अत्यंत आहत हुए और उन्होंने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया। आंदोलन समाप्त होने के बाद 10 मार्च 1922 को महात्मा गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया और 6 वर्ष की कैद की सजा दे दी गई।
महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन स्थगित करने की घोषणा का कई क्रांतिकारियों द्वारा तीव्र आलोचना किया गया। उनका मानना था कि अपने पूरे जोरों पर चल रहे हैं इस आंदोलन को मध्य में स्थगित करना उचित नहीं था।