हाइडेस्पीज का युद्ध कब हुआ था
हाइडेस्पीज का युद्ध 326 ईसा पूर्व में सिकंदर और पोरस के मध्य हुआ। इसे झेलम या वितस्तता का युद्ध भी कहा जाता है। संभवत ग्रीक में झेलम को हाइडेस्पीज नाम दिया गया है। यह युद्ध अत्यधिक भयानक था जिसमें हारते हारते सिकंदर को विजय मिली थी और वह पुरुराज की वीरता से अत्यंत प्रभावित हुआ।
पुरु का राज्य झेलम और चिनाब नदियों के मध्य था। पुरु के लिए पोरस शब्द का भी प्रयोग किया गया है।सिकंदर झेलम युद्ध को तो जीत जाता है लेकिन उसके सेना की इतनी अधिक क्षति होती है कि अपने विजय अभियान को वह आगे बढ़ाने में असमर्थ हो जाता है।
सिकंदर पोरस की इस बात को सुनकर अत्यधिक प्रसन्न होता है कि सिकंदर को पोरस के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है। सिकंदर पोरस को उसका राज्य वापस कर देता है। यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि इस युद्ध में पोरस के पुत्र की मौत हो जाती है।पोरस का एक पड़ोसी राजा था आम्भी जो सिकंदर की सेना से डरकर उसके साथ मित्रता कर लेता है।
माना जाता है कि आम्भी की सेना सिकंदर की सेना से बड़ी थी लेकिन आम्भी सही प्रकार से शत्रु की स्थिति का आकलन नहीं कर पाता है और उनसे मित्रता कर लेता है। लेकिन दूसरी तरफ पुरु अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए सिकंदर से युद्ध करने को तत्पर रहता है।सिकंदर के आक्रमण के समय पश्चिमोत्तर भारत अनेक छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था जिनमें से कुछ गणतंत्रात्मक थे और कुछ राजतंत्रात्मक।
इन छोटे राज्यों का पारस्परिक संघर्ष ही इनके पतन का कारण बना।सिकंदर ने जब पुरु पर आक्रमण किया तो उसे कई देशद्रोही राजाओं का साथ मिला जिसमें आम्भी एवं शशिगुप्त प्रमुख नाम है। पुष्करावती के संजय तथा अन्य कई राजाओं ने सिकंदर कीमित्रता स्वीकार करके उसे हर प्रकार की सहायता दी।लेकिन सिकंदर की राह इतनी आसान नहीं थी क्योंकि कपिशा और तक्षशिला के मध्य कुछ स्वतंत्रताप्रिय और लड़ाकू जातियों ने कदम कदम पर सिकंदर का जमकर प्रतिरोध किया।