गौतम बुद्ध का जन्म कब हुआ था?

महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में कपिलवस्तु के निकट  लुंबिनी नामक ग्राम में शाक्य कुल में हुआ था। लुंबिनी नेपाल की तराई में स्थित है। महात्मा बुद्ध की माता का नाम महामाया था।गौतम बुद्ध के जन्म के कुछ समय बाद ही इनकी माता की मृत्यु हो गई है। बुद्ध का पालन पोषण गौतमी ने किया इसलिए इन्हें गौतम बुद्ध भी कहा जाता है। महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था।

बुद्ध का अर्थ ज्ञान होता है। गौतम बुद्ध को बोधगया (बोधगया वर्तमान बिहार में स्थित है) में फल्गु नदी के किनारे पीपल के वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ। वैसे तो महात्मा बुद्ध ने कई गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की किंतु आलारकलाम महात्मा बुद्ध के प्रथम गुरु माने जाते हैं।

महात्मा बुद्ध के जन्म से पूर्व किसी ज्योतिषी ने उनके पिता शुद्धोधन को बताया था कि आपका होने वाला पुत्र या तो महान सन्यासी बनेगा या महान राजा। तो अपने पुत्र को महान राजा बनाने के उद्देश्य से बुद्ध के पिता ने इन्हें सांसारिक दुखों से दूर रखा और बुद्ध को पता नहीं था कि प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु होगी। एक दिन अपने साथी के साथ सिद्धार्थ बाहर घूमने निकले और उन्होंने देखा कि कोई वृद्ध किसी रोग से तड़प रहा है, किसी मृत व्यक्ति को शमशान ले जाया जा रहा है, लोग दुःख और कष्ट से परेशान हैं।

तब महात्मा बुद्ध ने अपने सारथी से पूछा कि क्या मुझे भी इन दुखों का सामना करना पड़ेगा। महात्मा बुद्ध के इन प्रश्नों का उत्तर इनके सारथी ने देते हुए कहा कि हां राजकुमार आपको भी एक दिन मरना पड़ेगा।इसके बाद लोगों के दुखों को दूर करने का निश्चय लेते हुए महात्मा बुद्ध ने गृह त्याग किया और सन्यासी बनने का निश्चय किया तथा ज्ञान की खोज में निकल पड़े। महात्मा बुद्ध के गृह त्याग को महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है।

 

महात्मा बुद्ध के जीवन से जुड़े आठ प्रतीक हैं जो अग्रलिखित हैं-

हाथी-बुद्ध के गर्भ में आने का प्रतीक।
कमल-जन्म का प्रतीक
सांड-यौवन का प्रतीक
घोड़ा-गृह त्याग का प्रतीक
पीपल-ज्ञान का प्रतीक
शेर-समृद्धि का प्रतीक
पदचिन्ह-निर्वाण का प्रतीक
स्तूप-मृत्यु का प्रतीक।

महात्मा बुद्ध ने अपने नगर भ्रमण के दौरान रास्ते में एक वृद्ध, एक रोगग्रस्त व्यक्ति, एक मृतक तथा प्रसन्न सन्यासी को देखा जो महात्मा बुद्ध के गृह त्याग का कारण बने।

महात्मा बुद्ध के प्रथम पांच शिष्यों के नाम थे-
वप्पा,भादिया, महानामा, कौण्डिण्य तथा अस्सागी। इनको महात्मा बुद्ध ने प्रथम उपदेश वाराणसी के उत्तर में स्थित सारनाथ में दिया। महात्मा बुद्ध द्वारा प्रथम उपदेश देने की घटना को बौद्ध ग्रंथों में धर्मचक्र प्रवर्तन नाम से जाना जाता है। पाली भाषा में इसे ‘धम्मचक्क पबत्तन’कहा जाता है।
महात्मा बुद्ध ने अपना उपदेश किस भाषा में दिया था?
महात्मा बुद्ध ने अपना उपदेश तत्कालीन जनसामान्य की भाषा ‘पालि’ में दिया था।

बौद्ध धर्म में वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था का विरोध किया। महात्मा बुद्ध के अनुसार मनुष्य जीवन में केवल कष्ट ही हैं। संसार कष्टों से भरा हुआ है। बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है। महात्मा बुद्ध के अनुसार जन्म मरण के बंधनों से मुक्त होना हमारा लक्ष्य है। क्योंकि जन्म लेने पर फिर कष्टों को भोगना पड़ेगा।

महात्मा बुद्ध के अनुसार घटना का कोई ना कोई कारण और से होता है इसी प्रकार दुख का भी एक कारण है और अष्टांगिक मार्ग अपनाकर दुखों को दूर किया जा सकता। महात्मा बुद्ध ने त्रिरत्न और चार आर्य सत्य की व्याख्या की। बौद्ध धर्म ने समाज के दो परित्यक्त वर्ग स्त्री और शूद्रों को अपने साथ जोड़ा। प्रारंभ में महात्मा बुद्ध संघ में स्त्रियों के आगमन पर सहमत नहीं थे किंतु अपने प्रिय शिष्य आनंद के आग्रह पर बुद्ध ने स्त्रियों को संघ में प्रवेश की अनुमति दी।

बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग इस प्रकार थे-
सम्यक दृष्टि
सम्यक संकल्प
सम्यक वाणी
सम्यक कर्म
सम्यक जीविका
सम्यक व्यायाम
सम्यक् स्मृति
सम्यक समाधि।

बौद्ध धर्म के विषय में हमें व्यापक जानकारी पालि भाषा में रचित तीन पुस्तकों जिन्हें त्रिपिटक कहा जाता है, से मिलती है। त्रिपिटकों का नाम निम्नलिखित है-
सूत्त पिटक-बुद्ध के धार्मिक विचार और वचनों का संग्रह इस पुस्तक में है।
विनय पिटक-बौद्ध दर्शन की विवेचना और नियमों का संग्रह।
अभिधम्म पिटक-बुद्ध के दार्शनिक विचारों का उल्लेख इसमें मिलता है।

महात्मा बुद्ध की मृत्यु 483 ईसा पूर्व में 80 वर्ष की आयु में कुशीनारा में हुई। बुद्ध अपने धर्म का प्रचार करते हुए मल्ल गणराज्य की राजधानी कुशीनारा पहुंचे जहां चुंद द्वारा अर्पित सूकर(शूकर) का मांस खाने के बाद बुद्ध की मृत्यु हो गई।

मिलिन्दपन्हो(मिलिन्द के प्रश्न) एक पुस्तक है जिसमें यूनानी राजा मिनेन्डर प्रथम के प्रश्नों का उत्तर बौद्ध विद्वान नागसेन द्वारा दिया गया है। बौद्ध धर्म पर दोनों के संवाद के रूप में पुस्तक लिखी गई है।

बौद्ध धर्म दो संप्रदायों हीनयान और महायान में बटा हुआ है। हीनयान महात्मा बुद्ध द्वारा स्थापित मूल बौद्ध धर्म है। हीनयानी महात्मा बुद्ध को एक महापुरुष के रूप में मानते हैं तथा मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करते हैं। आत्मा की शुद्धता पर बल देते हुए कठोर जीवन के माध्यम से मोक्ष की कामना करते हैं।

महायानी महात्मा बुद्ध को देव तुल्य मानते हैं और मूर्ति पूजा में विश्वास करते हैं। महायानी गृहस्थ जीवन पर अधिक बल देते हैं।

बौद्ध धर्म का प्रचार करने वाले शासकों में अशोक, मिनांडर, कनिष्क तथा हर्षवर्धन प्रमुख हैं। मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेंद्र तथा पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा।बिहार एवं बंगाल के पाल शासकों ने भी बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया। नालंदा तथा विक्रमशिला विश्वविद्यालय बौद्ध शिक्षा के प्रधान केंद्र थे।

बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाएं(जातक कथाएं) सूत्तपिटक में वर्णित है।
चार बौद्ध संगीति हुई-
प्रथम बौद्ध संगीति अजातशत्रु के शासनकाल में 483 ई. पूर्व में राजगृह में हुई। इसके अध्यक्ष महाकास्सप (महाकश्यप) थे।
द्वितीय बौद्ध संगीति कालाशोक के शासनकाल में 383 ईसा पूर्व में वैशाली में हुई। इसके अध्यक्ष सबाकामी थे।
तीसरी बौद्ध संगीति अशोक के शासनकाल में 255 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र में हुई। इसके अध्यक्ष मोग्गलिपुत्ततिस्स थे।
चतुर्थ बौद्ध संगीति कनिष्क के शासन काल में ईशा की प्रथम शताब्दी में कुंडलवन कश्मीर में हुई। इस संगीति में अध्यक्ष वसुमित्र तथा उपाध्यक्ष अश्वघोष थे। इस संगीति के बाद ही बौद्ध धर्म हीनयान तथा महायान नामक दो संप्रदायों में विभाजित हो गया था .

 

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