Parmar vansh ka sansthapak kaun tha

परमार वंश का संस्थापक उपेंद्र राज था। परमार वंश की राजधानी धारा नगरी थी। पहले परमारों की राजधानी उज्जैन थी।
परमार वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक राजा भोज था। साहित्य विज्ञान, गणित आदि में राजा भोज की विशेष रूचि थी। वास्तु शास्त्र पर आधारित ग्रंथ युक्तिकल्पतरू की रचना राजा भोज ने की। राजा भोज ने भोजपुर नगर की स्थापना भी की थी।

परमार शासकों के समय में साहित्य कला, विज्ञान आदि के विद्वानों को विशेष संरक्षण मिला। राजा भोज के शासनकाल में धारा नगरी विद्या एवं विद्वानों का प्रमुख केंद्र थी। स्वयं राजा भोज को कविराज की उपाधि से विभूषित किया जाता है।

नैषधीयचरितम् के लेखक श्रीहर्ष तथा प्रबंध चिंतामणि के लेखक मेरुतंग परमार वंश के समय में ही थे।
पद्मगुप्त, धनंजय, हलायुध,धनिक एवं अमितगति आदि विद्वान वाक्पति मुंज के दरबार में रहते थे।

चंदेल वंश का संस्थापक नन्नुक है। चंदेल वंश की स्थापना 831 ई में हुई। चंदेलों की राजधानी खजुराहो थी। इनकी प्रारंभिक राजधानी कालिंजर थी। राजा धंग ने राजधानी कालिंजर से खजुराहो स्थानांतरित की थी।

कार्कोट वंश का संस्थापक दुर्लभ वर्धन था। दुर्लभ वर्धन ने कार्कोट वंश की स्थापना 627 ई. में कश्मीर में की थी। दुर्लभ वर्धन के समय कश्मीर में ह्वेनसांग ने यात्रा की थी। कार्कोट वंश का सबसे प्रतापी शासक ललितादित्य मुक्तापीड था।

लोहार वंश का संस्थापक संग्रामराज था। संग्राम राज के बाद अनन्त राजा बना जिसकी पत्नी सूर्यमति ने प्रशासन को सुधारने में उसकी सहायता की। लोहार वंश का शासक हर्ष एक विद्वान राजा सिद्ध हुआ। वह साहित्य में रुचि लेता था तथा कई भाषाओं का ज्ञाता था।

कश्मीर के इतिहास का ज्ञान कराने वाली पुस्तक राजतरंगिणी का लेखक कल्हण हर्ष के दरबार में रहता था।
जयसिंह लोहार वंश का अंतिम शासक था जिसने 1128 से 1155 ईसवी तक शासन किया। जय सिंह के शासन के अंत से ही राजतरंगिणी का विवरण समाप्त हो जाता है।

वर्मन वंश का संस्थापक पुष्यवर्मन था। वर्मन वंश का उदय चौथी शताब्दी के मध्य में कामरूप (असम) में हुआ था। वर्मन  वंश की राजधानी प्राग्ज्योतिष्पुर थी। धर्मपाल के समय कामरूप पाल साम्राज्य का अंग बन गया।

गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक नागभट्ट प्रथम था। गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना मालवा में हुई। गुर्जर प्रतिहार वंश का सबसे शक्तिशाली शासक मिहिरभोज था.मिहिर भोज ने अपनी राजधानी कन्नौज को बनाया। मिहिर भोज विष्णु भक्त था तथा उसने विष्णु के सम्मान में आदि वाराह की उपाधि धारण की। गुर्जर प्रतिहार वंश का अंतिम शासक यशपाल था जिसने 1036 ईसवी तक शासन किया।

गहड़वाल (राठौर) वंश का संस्थापक चंद्रदेव था। गहड़वाल वंश की राजधानी वाराणसी थी। गहड़वाल वंश का सबसे प्रतापी शासक गोविंदचंद्र था। कृत्य कल्पतरु ग्रंथ का लेखक लक्ष्मीधर गोविंदचंद्र के दरबार में रहता था।गहड़वाल वंश का अंतिम शासक जयचंद था जिसे मोहम्मद गोरी ने 1194 ईस्वी में चंदावर के युद्ध में हराया।

चाहमान वंश का संस्थापक वासुदेव था। चौहान वंश की प्रारंभिक राजधानी अहिच्छत्र थी। इस वंश के शासक अजयराय द्वितीय ने अजमेर की स्थापना की और उसको राजधानी बनाया। विग्रहराज चतुर्थ बीसलदेव इस वंश के सबसे शक्तिशाली शासक हुए जिन्होंने हरिकेली नामक संस्कृत नाटक की रचना की।

कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा निर्मित अड़ाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद प्रारंभ में विग्रहराज चतुर्थ द्वारा निर्मित एक विद्यालय था जिसे तोड़कर कुतुबुद्दीन ऐबक ने मस्जिद बनवाया था। पृथ्वीराज तृतीय चौहान वंश के अंतिम शासक हुए। पृथ्वीराज चौहान ने तराइन के प्रथम युद्ध में मोहम्मद गोरी को हराया था किंतु तराइन के द्वितीय युद्ध में वह पराजित हुए।

पृथ्वीराजरासो के रचनाकार चंदबरदाई पृथ्वीराज तृतीय के दरबारी कवि थे।
पृथ्वीराज तृतीय ने रणथंभौर (राजस्थान) के जैन मंदिर का शिखर बनवाया था।

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