Sankat Mochan Hanuman Ashtak

संकट मोचन हनुमान अष्टक, एक प्रसिद्ध हिंदी भजन है जो हनुमानजी को समर्पित है। यह अष्टक, उनके शक्तिशाली गुणों की महिमा गान करता है और भक्तों को संकट से मुक्ति प्रदान करने का वादा करता है। यह अष्टक विभिन्न अवसरों पर भक्तों द्वारा गाया जाता है, खासकर संकट ग्रहण और शनि दोष निवारण के समय।

हनुमान अष्टक पाठ (Hanuman Ashtak Path) अत्यंत लाभकारी है । प्रतिदिन हनुमान अष्टक (Hanuman Ashtak) का पाठ करने से मनुष्य को सभी संकट, बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है। जब हनुमान जी छोटे थे तब उनकी अपार शक्तियाँ खेल-खेल में ऋषि-मुनियों एवं समस्त जगत के लिए परेशानियाँ उत्पन्न कर देता था । इस समस्या से बचने के लिए उन्हे बचपन मे ही यह श्राप मिला था की वे अपनी समस्त शक्तियों को तब तक भूले रहेंगे जब तक की कोई उन्हे उनकी शक्तियों को याद न दिलाए।

हनुमान अष्टक पाठ(Hanuman Ashtak) असीम शक्तियों के स्वामी हनुमान जी को उनकी शक्तियों की याद दिलाता है और मनुष्य उन्हे अपने कष्टों से मुक्ति दिलाने का निवेदन करता है । अतः हनुमान चालीसा  की तरह हनुमान अष्टक (Hanuman Ashtak) का पाठ भी अत्यंत गुणकारी एवं संकट से मुक्ति दिलाने वाला है ।

॥ हनुमानाष्टक ॥
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों ।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥

अर्थात- हे बजरंगबलि हनुमान जी ! बचपन मे आपने सूर्य को लाल फल समझकर निगल लिया था, जिससे तीनों लोकों में अंधेरा हो गया था। इससे सारे संसार में घोर विपत्ति छा गई थी । लेकिन इस संकट को कोई भी दूर न कर सका। जब सभी देवताओं ने आकर आपसे विनती की तब आपने सूर्य को अपने मुंह से बाहर निकाला और इस प्रकार सारे संसार का कष्ट दूर हुआ। हे वानर-रूपी हनुमान जी, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आप हीं को सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है।

बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो ।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥

अर्थात- अपने बड़े भाई बालि के डर से महाराज सुग्रीव किष्किंधा पर्वत पर रहते थें । जब महाप्रभु श्री राम लक्ष्मण के साथ वहाँ से जा रहे थे तब सुग्रीव ने आपको उनका पता लगाने के लिये भेजा । आपने ब्राह्मण का भेष बनाकर भगवान श्री राम से भेंट की और उनको अपने साथ ले आए, जिससे आपने महाराज सुग्रीव को कष्टों से बाहर निकाल कर उनका दुख दूर किया। हे बजरंगबली, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको हीं सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है।

अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥

अर्थात- महाराज सुग्रीव ने सीता माता की खोज के लिये अंगद के साथ वानरों को भेजते समय यह कह दिया था की यदि सीता माता का पता लगाए बिना यहाँ लौटे तो सबको मार दिया जाएगा। सब ढूँढ-ढूँढ कर निराश हो गये तब आप विशाल सागर को लाँघकर लंका गये और सीताजी का पता लगाया, जिससे सब के प्राण बच गये। हे बजरंगबली, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको हीं सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है।

रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मारो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥

अर्थात- अशोक वाटिका मे रावण ने सीताजी को कष्ट दिया, भय दिखाया और सभी राक्षसियों से कहा कि वे सीताजी को मनाएं, तब उसी समय आपने वहाँ पहुँचकर राक्षसों को मारा । जब सीता माता ने स्वयं को जलाकर भस्म करने के लिए अशोक वृक्ष से अग्नि कि विनती की, तभी आपने अशोक वृक्ष के ऊपर से भगवान श्रीराम की अंगूठी उनकी गोद मे डाल दी जिससे सीता मैया शोकमुक्त हुईं । हे बजरंगबली, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको हीं सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है।

बान लग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सुत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥

अर्थात- लक्ष्मण की छाती मे बाण मारकर जब मेघनाथ ने उन्हे मूर्छित कर दिया। उनके प्राण संकट में पर गये । तब आप वैध्य सुषेण को घर सहित उठा लाये और द्रोण पर्वत सहित संजीवनी बूटी लेकर आए जिससे लक्ष्मण जी के प्राणों की रक्षा हुई। हे महावीर हनुमान जी, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको हीं सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है।

रावन युद्ध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥

अर्थात- रावण ने भीषण युद्ध करते हुए भगवान श्रीराम और लक्ष्मण सहित सभी योद्धाओं को नाग पाश में जकड़ लिया । तब श्रीराम सहित समस्त वानर सेना संकट मे घिर गई, तब आपने हीं गरुड़देव को लाकर सबों को नागपाश से मुक्त कराया। हे महावीर हनुमान जी, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको हीं सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है।

बंधु समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।
जाय सहाय भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥

अर्थात- जब  अहिरावण  श्रीराम और लक्ष्मण को उठाकर अपने साथ पाताल लोक मे ले गया, उसने भली-भांति देवी की पूजा कर सबसे सलाह करके यह निश्चय किया की इन दोनों भाइयों की बलि दूँगा, उसी समय आपने वहाँ पहुँचकर भगवान श्रीराम की सहायता करके अहिरावण का उसकी सेना सहित संहार कर दिया। हे बजरंगबली हनुमान जी, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको हीं सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है।

काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो ॥ ८ ॥

अर्थात- हे वीरों के वीर महाप्रभु आपने देवताओं के तो बड़े-बड़े कार्य किये हैं । अब आप मेरी तरफ देखिए और विचार कीजिए कि मुझ गरीब पर ऐसा कौन सा संकट आ गया है जिसका निवारण नहीं कर पा रहें है । हे महाप्रभु हनुमान जी, मेरे ऊपर जो भी संकट आया है उसे कृपा कर दूर करें । हे बजरंगबली, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको हीं सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है।

॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे,
अरु धरि लाल लंगूर ।
वज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर ॥

हनुमानाष्टक की रचना किसने की


संकटमोचन हनुमानाष्टक की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी. माना जाता है कि हनुमान जयंती पर संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करने से व्यक्ति की हर बाधा दूर होती है.

हनुमान अष्टक पाठ के लाभ


जब व्यक्ति सभी तरफ से संकटों और परेशानियों से घिरा होता है तो उनसे निकलने के लिए संकटमोचन हनुमान जी की साधना सबसे सहायक सिद्ध होती है। जीवन में जितना भी कठिन समय चल रहा हो संकट मोचक हनुमान अष्टक का पाठ रामबाण जैसा काम करता है। अष्ट सिद्धि और नव निधियों के दाता हनुमान जी अपनी बाल अवस्था में बहुत ही शरारती थे। उन्हें बचपन में श्राप मिला था की वह अपनी सारी शक्तियों को भूल जाएंगे, किसी दूसरे के याद करवाने पर ही उन्हें अपनी शक्तियां याद आएंगी। संकटमोचन हनुमान अष्टक के माध्यम से भक्त हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण करवाते हैं और उनसे अपनी समस्याओं को खत्म करने के लिए प्रार्थना करते हैं।

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