तैमूरलंग कौन था
जब सैफ और करीना ने अपने बेटे का नाम तैमूर रखा तो यह सुनकर अत्यधिक आश्चर्य हुआ।शायद उन्हें तैमूर से जुड़े इतिहास का सम्यक ज्ञान नहीं। अन्यथा ऐसे बर्बर और अत्याचारी आक्रमणकारी के नाम पर अपने बेटे का नाम वे नहीं रखते। तैमूरलंग का नाम लेते ही हमारे सामने बर्बरता, रक्तपात, लूटपाट और मारकाट आदि का भयावह दृश्य उपस्थित हो जाता है।
तैमूर का जन्म सन 1336 में ट्रांस ऑक्सियाना मे केश या शहर-ए-सब्ज नामक स्थान पर हुआ था। वह इस्लाम धर्म का कट्टर अनुयायी था। वह सिकंदर की तरह बहुत महत्व कांक्षी व्यक्ति था। विश्व विजय के लिए लालायित रहता था। चंगेज खान की तरह समस्त संसार को अपनी शक्ति से रौंद डालना चाहता था। 1369 में समरकंद के मंगोल शासक के मर जाने पर उसने समरकंद की गद्दी पर कब्जा कर लिया और आगे विश्व विजय की राह पर निकल पड़ा।चंगेज खान की तरह ही उसने पूरी क्रूरता के साथ दूर-दूर के देशों पर आक्रमण कर उन्हें तहस-नहस कर दिया। 1387 तक उसने खुरासान, अफगानिस्तान और अजरबैजान आदि पर आक्रमण कर उन्हें अपने अधीन कर लिया। इन विजयों से उत्साहित होकर अब उसने भारत पर आक्रमण करने का निश्चय किया। उसने इस्लाम धर्म के प्रचार हेतु भारत में प्रचलित मूर्ति पूजा का विध्वंस करना अपना पवित्र उद्देश्य घोषित किया।
उसे भारत की समृद्धि और वैभव के बारे में भी पता था इसलिए विद्वानों का मानना है कि उसने भारत की दौलत लूटने के लिए ही यहां पर आक्रमण की योजना बनाई। फिरोजशाह तुगलक के निधन के बाद दिल्ली सल्तनत कमजोर पड़ गई थी तथा उसके उत्तराधिकारी अत्यंत निर्बल थे और राज्य की स्थिति अत्यंत सोचनीय हो गई थी। दिल्ली का शासक इतना शक्तिशाली नहीं था कि वह राज्य वासियों की बाहरी आक्रमण से रक्षा कर सके।भारत की इसी राजनीतिक अशक्तता का फायदा उठाकर तैमूर ने यहां पर आक्रमण करने का विचार किया।
अप्रैल 1398 में तैमूर एक भारी सेना लेकर समरकंद से भारत के लिए रवाना हुआ और उसने सिंधु, झेलम तथा चिनाब आदि नदियों को पार किया।अक्टूबर में वह मुल्तान से 70 मील उत्तर-पूर्व में स्थित तुंगानगर पहुंचा। उसने इस नगर को लूटा और वहां के बहुत से निवासियों का कत्ल कर दिया। मुल्तान और भटनेर पर कब्जा करने के बाद हिंदुओं के बहुत से मंदिर नष्ट कर डालें।भटनेर से वह आगे बढ़ा और लूटमार में मचाता हुआ दिसंबर के प्रथम सप्ताह में दिल्ली के निकट पहुंच गया।पानीपत के पास महमूद तुगलक ने कुछ सेना लेकर उसको रोकने का प्रयास किया लेकिन बुरी तरह पराजित होने के बाद वह युद्ध भूमि से भाग खड़ा हुआ और गुजरात की तरफ चला गया।
दूसरे दिन तैमूर ने दिल्ली में प्रवेश किया वह यहां लगभग 15 दिनों तक रुका।उस समय दिल्ली को दुनिया का सबसे धनी शहर माना जाता था। लाखों हिंदुओं की हत्या की गई। स्त्रियों तथा बच्चों को बंदी बना लिया गया। लगभग सप्ताह भर तक दिल्ली को बुरी तरह लूटा गया। यहां के निवासियों को गाजर, मूली की तरह काटा गया। पूरे दिल्ली में हर जगह रक्त और लाशें ही दिखाई दे रहे थे।कहा जाता है कि दिल्ली सड़ती लाशों की दुर्गंध से भर गयी।रक्तपात का दृश्य देखने में उसे खूब आनंद आता था।लोगों के घरों और फसलों को भी जला दिया गया। तैमूर ने वर्षों से संचित दिल्ली के पूरे खजाने को लूट लिया। यहां के शिल्पी और कारीगरों को भी तैमूर अपने साथ में बंदी बना कर ले गया। बंदी महिलाओं को तैमूर के सैनिकों के साथ रखा गया जिन्होंने उन पर अत्यधिक अत्याचार किया। दिल्ली के बाद उसने मेरठ और हरिद्वार में भी लूटमार मचाया। शिवालिक पहाड़ियों से होता हुआ हुआ कांगड़ा पहुंचा और इसके बाद उसने जम्मू पर भी चढ़ाई की। तैमूर ने दिल्ली को इतनी बुरी तरह से लूटा की दिल्ली की आर्थिक स्थिति अत्यधिक खराब हो गई और उसे संभलने में लगभग 100 साल लग गए। हर तरफ रक्त और लाशें पड़ी हुई थी जिसके कारण महामारी भी फैलने लगी। इस प्रकार तैमूर के आक्रमण से दिल्ली में जन-धन की अत्यधिक क्षति हुई।इस प्रकार भारत में अपार क्षति पहुंचाने के बाद मार्च 1399 ई. में सिंधु नदी को पार कर वह अपने देश लौट गया।
तैमूर एक तुर्क था लेकिन वह चंगेज खां का वंशज होने का दावा करता था जो कि एक मंगोल था। उस समय मध्य एशिया के मंगोलो ने इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया था। वह लंगड़ा था इसलिए उसे तैमूर लंग कहा जाता था। वह कहता था कि हिंदुस्तान पर आक्रमण करने का मेरा उद्देश्य काफिर हिंदुओं के विरुद्ध धार्मिक युद्ध करना है जिससे इस्लाम की सेना को हिंदुओं की दौलत और मूल्यवान वस्तुएं मिल जाए और काफिरों का नरसंहार कर दिया जाए। वह युद्ध बंदियों पर बिल्कुल विश्वास नहीं करता था क्योंकि यह उसके उसके लिए घातक हो सकता था। अतः वह लिखता है कि उन लोगों को तलवार का भोजन बनने के अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं था।
तैमूर की सेना में कई जातियां समाहित थी और उसकी सेना से एशिया, यूरोप तथा अफ्रीका के लोग डरते थे। उसके सैनिक अभियानों ने दुनिया के कई भागों को नष्ट करके रख दिया। विद्वानों का यह अनुमान है कि उसकी सेना ने उस समय के 5% लोगों का कत्लेआम कर दिया जिनकी संख्या लगभग डेढ़ करोड़ है।