तृतीय आंग्ल बर्मा(म्यांमार) युद्ध कब हुआ था
तृतीय आंग्ल बर्मा युद्ध अंग्रेजों और बर्मा के मध्य 1885 में हुआ था।प्रथम और द्वितीय बर्मा युद्ध में विजय के पश्चात अंग्रेजों ने बर्मा के तटीय प्रांतों पर अधिकार कर लिया था और अब वह आगे बर्मा के उत्तरी हिस्सों पर भी अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते थे।
अंग्रेजों को यह लोभ था कि उत्तरी बर्मा पर अधिकार करके उनका चीन से व्यापार आसान हो जाता और वह बर्मा में फ्रांस के बढ़ते हुए प्रभाव से भी चिंतित थे अतः उन्होंने वर्मा के विशाल बाजार पर अधिकार करने तथा फ्रांसीसी प्रभाव को समाप्त करने के लिए बर्मा पर पूर्ण रूप से अधिकार करने का प्रयास किया।
13 नवंबर 1885 को अंग्रेजों ने बर्मा पर आक्रमण कर दिया और 28 नवंबर 1885 को बर्मा के सम्राट थिबाऊ ने आत्मसमर्पण कर दिया। अंततः 1885 में बर्मा को पूर्ण रूप से भारतीय साम्राज्य में मिला लिया गया।
बर्मा को जीतना तो आसान था लेकिन उस पर शासन करना इतना आसान नहीं था।बर्मा के सम्राट ने भले ही आत्मसमर्पण कर दिया लेकिन वहां की देशभक्त जनता अंग्रेजों के शासन को आसानी से स्वीकार करने वाली नहीं थी। म्यांमार की देशभक्त जनता ने छापामार युद्ध प्रणाली के द्वारा अंग्रेजों से लोहा लिया। बर्मा के इस जन विद्रोह को कुचलने के लिए अंग्रेजों को 5 साल लग गए।
1935 के भारत सरकार अधिनियम के द्वारा बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया।भारत की आजादी के बाद बर्मा को भी अंततः 4 जनवरी 1948 को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।