वेदों की संख्या कितनी है

वेदों की संख्या चार है- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद। ऋग्वेद को सबसे प्राचीन वेद माना जाता है तथा अन्य तीन वेद बाद में रचे गये।

ऋग्वेद का रचनाकाल 1500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व के मध्य माना जाता है। ऋग्वेद से हमें पूर्व वैदिक युग के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। ऋग्वेद में सप्त सैंधव प्रदेश का उल्लेख है जहां पर आर्य सबसे पहले बसे थे। इंद्र आर्यों के प्रमुख देवता थे तथा गाय को प्रमुख पशु माना जाता था। गाय से संबंधित कई शब्दों का प्रयोग ऋग्वेद में हुआ है। ऋग्वेद के अध्ययन से हमें यह पता चलता है कि उस समय लोगों का प्रमुख व्यवसाय पशुपालन था और कृषि के नाम पर ऋग्वेद में केवल यव(जौ) का उल्लेख हुआ है।

यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद के रचनाकाल को उत्तर वैदिक काल के नाम से जाना जाता है। अर्थात उत्तर वैदिक काल के इतिहास को जानने के लिए यह तीनों वेद महत्वपूर्ण ज्ञान प्रदान करते हैं। उत्तर वैदिक काल का समय 1100 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व तक माना जाता है।

यजुर्वेद यज्ञ संबंधी अनुष्ठानों के बारे में है तथा इसमें स्तुति गीतों का भी संग्रह है। यजुर्वेद के दो भाग हैं कृष्ण यजुर्वेद एवं शुक्ल यजुर्वेद। यजुर्वेद में कुल 40 अध्याय हैं।सामवेद प्रार्थना तथा श्लोकों की पुस्तक है जिन्हें उपासना एवं धार्मिक अनुष्ठानों के अवसर पर लयबद्ध गाने के लिए संकलित किया गया था।

सामवेद को भारतीय संगीत का जनक माना जाता है। सामवेद में कुल 1549 ऋचाएं हैं जिनमें से केवल 78 नए हैं तथा शेष ऋग्वेद से ही लिए गए हैं। अथर्ववेद उत्तर वैदिक काल की लोक परंपराओं का संकलन है। रोग निवारण, तंत्र मंत्र, जादू टोना, औषधि, अनुसंधान, विवाह, प्रेम अंधविश्वास, राजकर्म आदि का वर्णन हमें अथर्ववेद में मिलता है। अथर्ववेद में कुल 5987 मंत्र हैं।

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