वांडीवाश का युद्ध
वांडीवाश का युद्ध सन 1760 में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के मध्य हुआ था। वांडीवाश वर्तमान भारत के तमिलनाडु राज्य के पुदुचेरी (पांडिचेरी) में स्थित है। वांडीवाश के युद्ध में फ्रांसीसियों की पराजय हुई और उन्होंने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
वांडीवाश का युद्ध अंग्रेजो और फ्रांसीसियों के मध्य यूरोप में चल रहे सप्तवर्षीय युद्ध(1756-1763) का ही एक भाग था। यूरोप में इन दोनों देशों के बीच युद्ध चल रहा था अतः भारत में भी इनके बीच युद्ध का प्रारंभ होना सामान्य सी बात थी। जैसा कि यह विदित है दक्षिणी और पूर्व भारत में अपने वर्चस्व को लेकर यह दोनों देश आक्रामक थे।
बक्सर का युद्ध( 22 अक्टूबर 1764 ई.)
प्लासी के युद्ध में विजय के बाद अंग्रेजों को बंगाल में अत्यधिक राजस्व की प्राप्ति हुई तथा उनकी शक्ति भी बढ़ गई अतः उन्होंने फ्रांसीसियों को भारत से पूरी तरह खदेड़ने की योजना बनाई। इन दोनों के बीच पहले से ही संघर्ष चल रहा था अतः प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला की तरफ से फ्रांसीसियों ने अपने सेना की एक टुकड़ी भी भेजी थी।
प्लासी का युद्ध (23 जून 1757 ई.)
फ्रांसीसी सेनानायक काउंट डी लैली,(Count de Lally) के नेतृत्व में फ्रांसीसियों ने तमिलनाडु के पांडिचेरी में स्थित वांडीवाश के किले पर दोबारा अधिकार करने के लिए उस पर चढ़ाई कर दी। दूसरी तरफ से सर आयरकूट( Sir Eyre Coot) के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने उनका सामना किया। इस युद्ध में फ्रांसीसियों की हार हुई और उन्होंने 22 जनवरी 1760 को समर्पण कर दिया। इस युद्ध में पांडिचेरी की हार के साथ ही फ्रांसीसियों ने अपनी भारतीय बस्तियां माहे, जिंजी, और कराईकल भी अंग्रेजों के हाथों गंवा दिए। इस युद्ध में विजय के बाद अंग्रेजों का पूरे भारत पर दबदबा कायम होने लगा और अन्य यूरोपीय शक्तियां जैसे पुर्तगाली और फ्रांसीसियों का प्रभाव कम होता गया।
19वीं शताब्दी में एडवर्ड कस्ट (Eduard Cust) द्वारा लिखित पुस्तक एनल्स ऑफ द वार्स ऑफ 18th सेंचुरी (Annals of the Wars of the 18th Century) के अनुसार-
फ्रांसीसियों की सेना में 300 यूरोपीय घुड़सवार, 2250 यूरोपियन सैनिक, 1300 भारतीय सैनिक, 3000 मराठे तथा 16 तोपे थी।
अंग्रेजों ने 80 यूरोपियन घुड़सवार, 250 भारतीय घुड़सवार, 1900 यूरोपियन सैनिक, 2100 भारतीय सैनिक और 26 तोपें तैनात किये थे।
पेरिस की संधि (1763)
1763 में पेरिस की संधि के तहत यूरोप में सप्त वर्षीय युद्ध समाप्त हो गए।अतः यूरोप में संधि होने के बाद भारत में भी अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य संधि हो गई। अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों को वह सभी क्षेत्र उनको वापस कर दिए जो 1749 तक उनके अधिकार में थे जिनमें पांडिचेरी के अतिरिक्त माहे, यनम और कराईकल भी शामिल थे।
अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों को चंद्रनगर भी इसी संधि के तहत वापस कर दिया था लेकिन 1794 में उसे वापस अपने अधिकार में ले लिया। 1816 में पुनः चंद्रनगर फ्रांस को वापस लौटा दिया गया और यह 1850 तक पांडिचेरी के गवर्नर जनरल के राजनीतिक नियंत्रण के अधीन रहा।
इस संधि के तहत फ्रांसीसियों को वापस मिले बस्तियों में वे सेना नहीं रख सकते थे तथा उनकी किलेबंदी नहीं कर सकते थे। केवल व्यापारिक गतिविधियों के लिए उनका प्रयोग किया जा सकता था।
पांडिचेरी पर अधिकार जमाने के लिए 17 वीं शताब्दी के अंत में डचों और फ्रांसीसियों के बीच कई बार संघर्ष हुए और कई बार अंग्रेजों ने भी इस पर कब्जा जमाया। अंततः पेरिस की संधि द्वारा यह क्षेत्र फ्रांसीसियों को दे दिया गया और भारत की स्वतंत्रता के बाद 16 सितम्बर 1962 को औपचारिक रूप से फ्रांसीसियों द्वारा पांडिचेरी भारत को हस्तांतरित किए जाने तक यह एक फ्रांसीसी उपनिवेश बना रहा। (अनौपचारिक रूप से 1 नवंबर 1954 तक यह भारत का अंग बन चुका था) ।
भारत में फ्रांसीसियों की असफलता के कारण-
- अंग्रेजों के पास ताकतवर नौसेना का होना। अंग्रेज यूरोप और बंगाल से भी तुरंत सेना मंगा सकते थे लेकिन फ्रांसीसियों के पास ऐसे संसाधनों की कमी थी। फ्रांसीसियों की नौसेना अंग्रेजों के सामने कमजोर थी।
- अंग्रेजों के पास भारत में तीन महत्वपूर्ण केंद्र मद्रास, बाम्बे और कलकत्ता थे। दूसरी तरफ फ्रांसीसियों के पास केवल एक ही महत्वपूर्ण केंद्र पांडिचेरी था। इसका तात्पर्य है कि यदि पांडिचेरी पर शत्रुओं ने कब्जा जमा लिया तब फ्रांसीसियों के पास विजय की बहुत कम ही आशा थी जबकि ऐसी स्थिति में अंग्रेजों के पास दूसरे अन्य विकल्प भी थे।
- प्लासी के युद्ध में विजय के बाद बंगाल अंग्रेजों के हाथ में आ गया जिससे अंग्रेजों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो गई और उनकी सैनिक क्षमता भी बढ़ गई।
- अंग्रेजों के पास रॉबर्ट क्लाइव और सर आयरकूट जैसे योग्य सैन्य रणनीतिकार थे।
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